शर्तें तुम्हारी होती थीं
बालहठ मेरा
तुम विश्लेषक रिश्ते
मैं एक चितेरा,
कलरव की संध्या बेला में
अनगढ़ दृश्य बिखेरा
समूह में लौटते पक्षी
देते दार्शनिक टेरा,
मनगढ़ जीवन ऊबड़_खाबड़
निर्धारित ही है बसेरा,
भ्रमित भाग्य या कर्म उन्मत्त
क्या ले जाए मेरा,
जिसकी बगिया वही है माली
बेहतर मेरा डेरा।
धीरेन्द्र सिंह
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