प्यार उजियारा पथ, डगर दर्शाए
आपकी रोशनी से जिंदगी नहाई है
तृषित न रह गई तृष्णा कोई अपूर्ण
तृप्ति भी आकर यहां लगे शरमाई है
पथरीली राहें थीं कंकड़ीली डगरिया
बनकर मखमल तलवों तक पहुंच आई है
ऐसी शख्सियत मिलती भला कहां
चांदनी भी है और अरुणाई है
रुधिर के कणों में डी एन ए तुम्हारा भी
खानदानी बारिश सा तुम भिंगाई हो
तुम्हें सर्वस्व कह दिया तो सच ही कहा
संपूर्णता संवरती तुम्हारी जगदाई है।
धीरेन्द्र सिंह
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