मंगलवार, 22 अक्टूबर 2024

इलेक्ट्रॉनिक प्यार

 इलेक्ट्रॉनिक बयार है मोबाइल की छांव

गिटिर-पिटिर अक्सर तो कभी कांव-कांव


चिकनी स्क्रीन पर दौड़ रही हैं अंगुलियां

अक्षर-अक्षर टाइप कर बोल रहे बोलियां

कहना औपचारिकता मांगे बस एक ठाँव

गिटिर-पिटिर अक्सर तो कभी कांव-कांव


फ़िल्टर से चेहरे में भरकर गजब निखार

हर दिन चाहें हो जाए इलेक्ट्रॉनिक त्यौहार

वीडियो चैट करते चले भाव लहर नाव

गिटिर-पिटिर अक्सर तो कभी कांव-कांव


धीर बनकर परिचय फिर बन जाते अधीर

इलेक्ट्रॉनिक प्यार में कहां मर्यादा लकीर

ब्लॉक अनब्लॉक खेल में करते आँय-बाँय

गिटिर-पिटिर अक्सर तो कभी कांव-कांव।


धीरेन्द्र सिंह

22.10.2024

16.32




रविवार, 20 अक्टूबर 2024

उम्र

 जीवन सत्य है, उम्र एक पड़ाव

अनुभूतियों में रिश्ते अनेक छांव


बढ़ती हुई उम्र की अपनी रीतियाँ

अपने लागों बीच हैं अनेक ठाँव

व्यक्ति क्या चाहता सृष्टि जानें

अनुभूतियों में रिश्ते अनेक छांव


अद्भुत व्यक्तित्व मिले हर मोड़

जोड़तोड़ जीवन को देता रहा पांव

मां-पिता का सानिध्य अबोला है

अनुभूतियों में रिश्ते अनेक छांव


नियति भी नियत है लेकर नेमत

जीवन डगर अपनी कुछ छाले घाव

प्रसन्नताएँ आशीष बन रहीं बरस 

अनुभूतियों में रिश्ते अनेक छांव।


धीरेन्द्र सिंह

21.10.2024

06.31




शनिवार, 19 अक्टूबर 2024

बदरी

 पर्वतों की तलहटी

श्वेत नदी अनुभूति

सूर्योदय संग उठती

बदरी सी दे प्रतीति


धीरे-धीरे उठते बादल

जैसे पहाड़ी गीत

गहन सघन गगन 

पर्वत आगे श्वेत भित्त


कोहरा या बादल

हैं पहाड़ मीत

हैं पहाड़ बतलाते

प्रकृति जीव रीत


सब धवल उन्मुक्त

हवाएं रच गीत

पहाड़ियों की गुंजन

ऊर्जा उत्साहित सींच।


धीरेन्द्र सिंह

19.10.2024

20.23, महाबलेश्वर



शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2024

पहाड़ियों के ऊपर

 जीवन के झूमर, पहाड़ियों के ऊपर

छोटे-छोटे मकान, आसमां को छूकर


समतल न राहें, समतल नहीं जीवन

श्रम साधना पुकारे, दृगतल हरियाली छूकर

गहन शांति चहुंओर, अंग-अंग रच भोर

छोटे-छोटे मकान, आसमां को छूकर


हरे झुरमुटों में, उभरता कहीं समाज

सड़क पर कहीं अकेला, संभावना ऊपर

कर्म के अंजोर में भाग्य को बो कर

छोटे-छोटे मकान, आसमां को छूकर


पर्यटन में निहित है विकास संभानाएँ

होता है उदित सूरज यात्री मंत्र जपकर

अतिथियों का स्वागत मन मुदित होकर

छोटे-छोटे मकान, आसमां को छूकर।


धीरेन्द्र सिंह

18.10.2024

17.47, पंचगनी


गुरुवार, 17 अक्टूबर 2024

तथ्य का त्यौहार

 चल मोहब्बत कर लें सोहबत

कौन अच्छा उनके बनिस्बत


एक समय सौभाग्य सा है

एक गति में निजता अस्मत

एक प्रयास लिए नव उल्लास

सोचना क्या, हो जा सहमत


शौर्य यदि है नहीं, चल नहीं

वरना बोलेगा हृदय, कैसी जहमत

याचना से कब मिला है प्यार

बिन झुके कब मिल सकी रहमत


मर्यादाएं उलझनों में हैं उलझाती

सोचना इतना नहीं, ओ मोहब्बत

कब हृदय दर्शाता है यूं व्यग्रता

तथ्य का त्यौहार, दे न अभिमत।


धीरेन्द्र सिंह

17.10.2024

21.43





बुधवार, 16 अक्टूबर 2024

लिखना आसान

 लिखना आसान है

 गढ़ना नहीं

प्यार खिलवाड़ कहां

डरना नहीं,


यही सूक्ति वाक्य

निस जो दोहराए

प्यार की पायलिया

खनक फिर धाए,

व्हाट्सप्प, टेलीग्राम,

इंस्टा जो भी पाए,

मूड मिजाज जांच 

प्रेम चर्चा दौड़ाएं,


लिखते समय भाव

मढ़ना नहीं

प्यार खिलवाड़ कहां

डरना नहीं,


हाल पूछो, चाल पूछो

और कोई मलाल पूछो

खुश रहें खिलखिलाएं

युक्तियां क्या हो सोचो,

निरंतर जीवंतता पनपे

समय से अवसर नोचो,

कोई धड़क उठा क्यों

तर्ज है नहीं सोचो,


लिखते समय निभाव

उघड़ना नहीं,

प्यार खिलवाड़ कहां

डरना नहीं।


धीरेन्द्र सिंह

16.10.2024

06.20




सोमवार, 14 अक्टूबर 2024

अनुगूंज

 एक अनुगूंज

मद्धम तो तीव्र

सत्य को कर आलोड़ित

यही कहती है,

धाराएं वैसी नहीं

जैसी दिखती

बहती हैं;


मौलिकता

या तो कला में है

या क्षद्म प्रदर्शन में

फिर व्यक्तित्व क्या है

परिस्थितियों के अनुरूप

मेकअप किया एक रूप

या बदलियों में

उलझा धूप;


पगडंडियों की अनुगूंज

खेत-खलिहान से होते

दूब पर कंटक पिरोते

गूंजती है मद्धम

तलवों की आह

दब जाती है,

क्या अब यही

जीवन थाती है ?


गूंज बन पुंज

हो रहा अनुगूंज

कोई रहा देख

किसी को रहा सूझ,

जिंदगी ठुमक कहती

मनवा मन से बूझ।


धीरेन्द्र सिंह

15.10.2024

09.26