शुक्रवार, 14 जून 2024

नयनों की बतियाँ

 जंगल, पर्वत, झरने, नदियां

सब तेरे नयनों की बतियाँ

 

कोई कुछ भी तुन्हें जैसे बोले

हिय मेरे तेरा मौसम ही डोले

तुम लगती हो प्रिए गलबहियां

सब तेरे नयनों की बतियाँ

 

यहां वादियां मिलती कहां ऐसे

तेरे नयनों की मदमाती धुन जैसे

विचरूं उनमें भर सांसे सदियां

सब तेरे नयनों की बतियाँ

 

पुतली, पलक जीवन झलक

देखूँ चाहूं तुझे जीवन ललक

ढलक न मेरी नयन सूक्तियाँ

सब तेरे नयनों की बतियाँ।

 

धीरेन्द्र सिंह

15.07.2024

11.05

गुरुवार, 13 जून 2024

लाठी बनाकर

 मुझे शब्द की एक काठी बनाकर

कोने में रख गए हैं लाठी बनाकर


कहता था अक्सर शब्द ही ब्रह्म है

शब्द में हों अभिव्यक्त प्रथम कर्म है

चलते बने वह चाह साथी बनाकर

कोने में रख गए हैं लाठी बनाकर


उपेक्षित सा पड़ा है न वह प्रतीक्षित

लाठी तो संकट में लगती है दीक्षित

क्या मिला उन्हें संग वादी गंवाकर

कोने में रख गए हैं लाठी बनाकर


ठक-ठक की आवाज से था संवाद

स्व रक्षा का है यह साथी निर्विवाद

एक दिन अस्वीकारा बकबाती बताकर

कोने में रख गए हैं लाठी बनाकर।


धीरेन्द्र सिंह

14.06.2024

10.18

दमित भावनाएं

 बलवती हो रही हैं निज भावनाएं

एक आप कर रहीं दमित कामनाएं


एक अकुलाहट में निहित बुलाहट

एक मनआहट में विस्मित कबाहट

संशय तोड़ उभरतीं संभावित पताकाएं

एक आप कर रहीं दमित भावनाएं


संस्कार का शीतधार वेग है अपार

प्रेम है आपका बस संयमित दुलार

बांध तोड़कर उफनने को आमादा धाराएं

एक आप कर रहीं दमित भावनाएं


ओ साधिका साध दी छवि जीवन

ओ वामिका आंच दी रचि सीवन

धारित जीवन निहित कई वर्जनाएं

एक आप कर रहीं दमित भावनाएं


चार दशक बाद न रहा उत्साही चषक

क्या निज उपवन है गया कहीं धसक

आपकी शैली में आतुर शमित सर्जनाएँ

एक आप कर रहीं दमित भावनाएं।


धीरेन्द्र सिंह

14.06.2024

09.17



आतुर थाली

ज्योतिष कह रहा कोई आनेवाली है

तब से कल्पनाओं की जारी जुगाली है

 

अनुभूतियां नियुक्तियां मधु तरंग करें

रिक्तियां मुक्तियाँ लखि प्रबंध करें

नयन प्रतिबद्धता ने राह खंगाली है

तब से कल्पनाओं की जारी जुगाली है

 

आगत के स्वागत का नव वृंदगान है

पलकों के गलीचे का कोमल विज्ञान है

अधर शब्द पुष्पगुच्छ सांसें ताली हैं

तब से कल्पनाओं की जारी जुगाली है

 

किस योग्यता का न्यौता मन ब्यौता

किस भव्यता से हृदय को हृदय सौंपा

अक्षत, मिष्ठान, दीप ले आतुर थाली है

तब से कल्पनाओं की जारी जुगाली है।

 

धीरेन्द्र सिंह

12.06.2024

22.43



बुधवार, 12 जून 2024

जिद्दी

 सुबह ढल रही है उदय शाम हो

कहो ज़िद्दी ऐंठन भरी तान हो


प्रेम की आपकी कई परिभाषाएं

एक समझें कि दूजी उभर आएं

नए प्रेम की आवधिक गान हो

कहो ज़िद्दी ऐंठन भरी तान हो


एक के साथ दूजा करे आकर्षित

लपक कर बढ़े कर पहला शमित

दूजा भाया नहीं ना इत्मिनान हो

कहो ज़िद्दी ऐंठन भरी तान हो


साहित्य छूटा क्या है एम ए खूंटा

हुआ जब अपमान थे अपने अजूबा

बिखर कर हो भंजित लिए गुमान हो

कहो ज़िद्दी ऐंठन भरी तान हो।


धीरेन्द्र सिंह

12.03.2024

20.55




मंगलवार, 11 जून 2024

फरीदाबाद

 उसके फोन में इतने नाम हैं

लगे सब ही उलझे, बेकाम हैं

हर किसी से हो बातें आत्मीय

सब सोचें संबंध यह सकाम है


क्यों लरजती है इस तरह लज्ज़ा

चूनर लटक रही घुमाती छज्जा

जो था कभी करीब गुमनाम है

सब सोचें संबंध यह सकाम है


45 वर्ष में बदन भरने लगा है

प्रसंग भावुकता में बढ़ने लगा है

बंद फेसबुक सक्रिय टेलीग्राम है

सब सोचें संबंध यह सकाम है


नारी शक्ति, स्वन्त्रत आसमान

नारी स्वयं में है पूर्ण अभिमान

फरीदाबाद जिंदाबाद प्रणय धाम है

सब सोचें संबंध यह सकाम है।


धीरेन्द्र सिंह

12.06.2024


08.30

अनुरागी

 एकल प्रणय प्रचुर अति रागी

खुद से खुदका गति अनुरागी


तन की दहकती हैं खुदगर्जियाँ

मन में आंधियों सी हैं मर्जियाँ

समय की धूनी पल क्या पागी

खुद से खुदका गति अनुरागी


काया कब कविता सी रचि जाए

अनुभूतियों में बिहँसि धंसि जाए

आंचल को गहि सिमटी हिय आंधी

खुद से खुदका गति अनुरागी


प्रश्रय प्रीत मिले तो प्रणय प्रयोज्य

आश्रय ढीठ खिले लो तन्मय सुयोग्य

उठ बैठा संग साड़ी जैसे प्रखर वादी

खुद से खुदका गति अनुरागी।


धीरेन्द्र सिंह

11.06.2024

17.43