सोमवार, 13 मई 2024

खुमारी या विरह नाद


 

समर्पित प्रेम में होता यह विषय विवाद

मीरा सी खुमारी या राधा सा विरह नाद

 

अंतस हिलोर मारे अभिलाषाओं की शुमारी

गहन तरंग उठे असीम चेतना की खुमारी

प्रणय पुष्प सा फले, फूले, महके निर्विवाद

मीरा सी खुमारी या राधा सा विरह नाद

 

एक ही धूरी पर प्रणय की अनंत शाखाएं

कुछ मीरा कहें कुछ संग राधा गुनगुनाएं

क्या प्रेम मात्र एक छात्र एक पाठ संवाद

मीरा सी खुमारी या राधा सा विरह नाद

 

किस तरफ शौर्य का गुंजित है अभिमान

बिना साहस प्रेम का हो सके ना ज्ञान

कान्हा की बांसुरी तो सुदर्शन चक्र निनाद

मीरा सी खुमारी या राधा सा विरह नाद।

 

धीरेन्द्र सिंह

13.05.2024

16.39

रविवार, 12 मई 2024

प्यार आजन्म

 

प्यार आजन्म, बस एक मधुर गुंजन है

बहुत कम लोगों का, इससे समंजन है


एक छुवन, एक कंपन, एक जुगलबंदी

प्यार की हदबंदी का क्या यही अंजन है

मां, बहन, भ्राता आदि लगें औपचारिकताएं

प्रेमी-प्रेमिका भाव नित्य का अभिनंदन है


हंसी-मजाक में देते निमंत्रण तपाक से

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या कि क्रंदन है

वासना मुखरित हो रही विभिन्न रूप में

क्या प्यार की अनुभूतियों का भंजन है


लग रहा देख सोशल मीडिया का लेखन

प्यार भ्रमित, दूषित का, बढ़ रहा निबंधन है

प्यार पोषित, सिंचित, पल्लवित, पुष्पित

झटपट, चटपट का बढ़ रहा जगवंदन है


मन को छुए बिना तन की ओर धाएं

संवाद साधनों में यह रुचिकर व्यंजन है

प्यार उपेक्षित शालीन सा पड़ा है कहीं

ललक छलक ढलक जैसे कि मंजन है।


धीरेन्द्र सिंह

12.05.2024

17.39


गुरुवार, 9 मई 2024

स्वेद क्रांति

 


पसीने के बूंदों संग भाल जगमगाता है

आपके श्रम में प्यार संग यूं निभाता है

 

अपने भीतर ही उपजता है अपना प्यार

हृदय के कोने में छुपा रहता है वह यार

कितना भी व्यस्त रहें बूंद झिलमिलाता है

आपके श्रम में प्यार संग यूं निभाता है

 

स्वेद की बूंद की अपनी विशिष्ट महत्ता

श्रमिक के सिवा क्या पसीना बिन इयत्ता

तेज हो सांस तो स्वेद संतुलन बनाता है

आपके श्रम में प्यार संग यूं निभाता है

 

स्वस्थ साफ देह स्वेद इत्र भी शरमाए

कोई पहना वस्त्र नासिका की भरमाए

स्वेद क्रांति पर पाठ कहां कौन पढ़ाता है

आपके श्रम में प्यार संग यूं निभाता है

 

पसीने से होती है जग में नई क्रांतियां

पसीना में भी श्रृंगार की बसी भ्रांतियां

पसीने से जुड़ता वह पूर्ण जुड़ जाता है

आपके श्रम में प्यार संग यूं निभाता है।

 

धीरेन्द्र सिंह

11.05.2024

12.08

सोच बेजार है

 मशवरा न कीजिए तर्क का बाजार है

कौन किसका शुभचिंतक, सोच बेजार है



अपने-अपने अनुभवों से है जनित ज्ञान

हर अनुभव का अपना ही निजी मकान

आत्मस्वर ही श्रेष्ठ जुड़ा स्वतः बेतार है

कौन किसका शुभचिंतक, सोच बेजार है


सत्य परम सत्य उसमें भी न एकरूपता

तथ्य प्रखर तथ्य न्यायालय में है नोचता

परिवेशजनित कथ्य अवधि बाद बेकार है

कौन किसका शुभचिंतक, सोच बेजार है


इसका स्वार्थ उसका स्वार्थ निज परमार्थ

किसका कर्म किसका भाग्य स्वयं चरितार्थ

एक चिन्तनपूर्ण छल मूल लयकार है

कौन किसका शुभचिंतक, सोच बेजार है


ना जी ना इसमें नहीं है नकारात्मकता

आदर्श की पुस्तकों सी अब कहाँ आत्मा

एक जीवन मिश्रित अभिनय से जार है

कौन किसका शुभचिंतक, सोच बेजार है।


धीरेन्द्र सिंह

09.95.2024

19.08

सोमवार, 6 मई 2024

चितवन को नमन



सर्जना प्रातः उल्लसित हो भरे सघन
मेरी रचना पर प्रथम आगमन चितवन

यह भी तो है एक बौद्धिक अनुराग
पहले ही देती कुहुक क्या करें काग
भावनाएं कल्पना संग करें व्योम गमन
मेरी रचना पर प्रथम आगमन चितवन

शब्दों की धड़कन में हैं नई फड़कन
खनक उठते शब्द रसोई के हों बर्तन
सुबह लगे जैसे कर रहा मन भजन
मेरी रचना पर प्रथम आगमन चितवन

सहजता ठीक जीवन करें क्यों दिखावा
मेरी रचनाएं प्रेम का ही हैं बुलावा
प्रत्येक दृष्टि का अभिनव है तकन
मेरी रचना पर प्रथम आगमन चितवन

प्रतिक्रियाएं भी हैं कल्पना की उल्काएं
शब्द भरे प्रोत्साहन लेखन भाव जगाएं
हृदय आदर से करे आप सबका नमन
मेरी रचना पर प्रथम आगमन चितवन।

धीरेन्द्र सिंह
06.04.2024
29.01

शनिवार, 4 मई 2024

गर्मी सघन

 घुमड़कर बदरिया आ जा गगन

सही नहीं जाती अब गर्मी सघन



वह भी तो करतीं ना मीठी बतिया

सहज ना रहा जीवन अब शर्तिया

एकाकीपन का और कितना मनन

सही नही जाती अब गर्मी सघन


ना समझो कहूँ यह मौसम मार है

मौसम पर उपकरणों का अख्तियार है

दग्ध सूरज मन में, है बढ़ता तपन

सही नहीं जाती अब गर्मी सघन


साथ रहकर भी साथ जो रहता नहीं

पात्र करीब पर जल है बहता कहीं

प्रीत वैराग्य में नित बढ़ता दहन

सही नहीं जाती अब गर्मी सघन


ओ बदरी बरसकर हरीतिमा जगाओ

खिलना क्या होता मनमलिन को बताओ

भींगे परिवेश में दे दो वही अगन

सही नहीं जाती अब गर्मी सघन।


धीरेन्द्र सिंह

शुक्रवार, 3 मई 2024

शब्द आपके

 शब्द आपके छू जाते हैं

मन में होती सिहरन


पंखुड़ी पर ओस बूंद

कितनी कोमल ठहरन


ऐसे उगता है दिन मेरा

शब्द आपके संग बनठन

एक चेतना होती प्रवाहित

संग भाव उमंग गहन


कोमलतम अनुभूति आपकी

जैसे हो सुगंधित उबटन

खिल जाता तब अंग-अंग

मन हर्षित हो टनाटन


निखरे भाव लपेटे शब्द

रचि भावों में चितवन

मुझको देखे दृष्टि सृष्टि

कब होगा निर्मित मधुबन।


धीरेन्द्र सिंह

03.04.2024

07.25