शनिवार, 4 नवंबर 2023

इस जमाने में

 मैंने नभ को छोड़ दिया बुतखाने में

वायरस संक्रमण मिले इस जमाने में


सूर्य रश्मियां छू न सकें अभिलाषी

जीव-जंतु सब ऊष्मा के हैं प्रत्याशी

धरती बदल रही जाने-अनजाने में

वायरस संक्रमण मिले इस जमाने में


पत्ते धूल धूसरित भारयुक्त भरमाए

कैसे हो स्पंदित जग पवन चलाएं

आरी और कुल्हाड़ी उलझे कट जाने में

वायरस संक्रमण मिले इस जमाने में


उद्योग जगत में भी दिखे मनमानी

यहां-वहां, गंगा में छोड़ें दूषित पानी

माँ गंगा को कर प्रणाम आचमन गाने में

वायरस संक्रमण मिले इस जमाने में


दिन में पैदल चलना भी एक साहस है

वायु, वाहन, व्यग्रता से सब आहत हैं

क्या जाएगा बदल ऐसा लिख जाने में

वायरस संक्रमण मिले इस जमाने में।


धीरेन्द्र सिंह

04.11.2023

13.08

शुक्रवार, 20 अक्टूबर 2023

सुबह नई

 भावनाएं रंगमयी मन में सुलह कई 

कामनाएं सुरमयी तन में सुबह नई 


जीवन पथ पर कर्म के कई छाप

कदम सक्रिय रहें सदा राहें नाप

स्वास्थ्य चुनौतियां टीस पुरानी, नई

कामनाएं सुरमयी तन में सुबह नई


सांस अथक दौड़, आस सार्थक तौर

स्वयं से अपरिचित, अन्य कहीं गौर

जीवन असुलझते तो गुत्थमगुत्था भई

कामनाएं सुरमयी तन में सुबह नई


आवारगी की मौज में तमन्नाएं फ़ौज

अभिलाषाएं करें निर्मित नित नए हौज

डुबकियाँ में तरंगों की मस्त हुड़दंगई

कामनाएं सुरमयी तन में सुबह नई।


धीरेन्द्र सिंह

20.10.2023

18.12

बुधवार, 18 अक्टूबर 2023

सरणी

 देखी हो कभी

प्रवाहित सरणी

हृदय की,

बैठी हो कभी 

तीरे

निःशब्द, निष्काम

हृदय धाम

नीरे-नीरे,

देखी हो चेहरा

तट पर ठहरे जल में

धीरे-धीरे,

एक गंगा है

हृदय प्रवाहित

आओ

 हाँथ में दिया लिए

प्रवाहित कर दें

भांवों को संयुक्त,


मुड़ जाएं अपनी राह

जहां चाह।


धीरेन्द्र सिंह

18.10.2023

बुधवार, 11 अक्टूबर 2023

साँसों की अलगनी

 साँसों की अलगनी भवनाओं का जोर

अभिलाषाएं संचित चलन का है दौर


अबाधित सांस है उल्लसित आस है

पास हो हरदम कहे टूटता विश्वास है

निगरानी में ही संपर्क रचा है तौर

अभिलाषाएं संचित चलन का है दौर


यह चलन, चाल-चरित्र का है हवन

यह बदन, ढाल-कवित्व का है सदन

उभरती हर कामना को है देता ठौर

अभिलाषाएं संचित चलन का है दौर


प्रौद्योगिक संपर्क के साधन हैं विशाल

एक तरफ आलाप दूसरी तरफ है तान

गान में वर्जनाओं का है सज्जित मौर

अभिलाषाएं संचित चलन का है दौर


जब चाहे जिसके साथ कदम दर कदम

संग में उमंग किसी को ना हो वहम

मन ना लगे ब्लॉक का है आखिरी कौर

अभिलाषाएं संचित चलन का है दौर।


धीरेन्द्र सिंह

12.10.2023

04.35

चांद बांचता

 चांद देखा झांकता भोर में बांचता

रात भर कुछ सोचता रहा जागता


ग्रह-नक्षत्र से जग भाग्य है संचालित

सूर्य-चांद से जीव-जंतु है चालित

कौन सी ऊर्जा चांद निरंतर है डालता

रात भर कुछ सोचता रहा जागता


आ ही जाता चांद झांकता बाल्कनी

छा ही जाता मंद करता भूमि रोशनी

तारों से छुपते-छुपाते मन को टांगता

रात भर कुछ सोचता रहा जागता


यूं ना सोचें चांद का यही तौर है

चांदनी बिना कैसा चांद का दौर है

कह रहा है चांद या कुछ है मांगता

रात भर कुछ सोचता रहा जागता।


धीरेन्द्र सिंह


12.10.2023

05.53

मंगलवार, 10 अक्टूबर 2023

लूटकर

 

बहुत कुछ लूटकर, दिल ना लूट पाए

यूं तो मित्रों में अपने, हंसे मुस्कराए

 

प्रणय का पथ्य भी होता है सत्य

प्यार के पथ पर, असुलझे कथ्य

प्रीत की डोर पर बूंदे ही सुखा पाए

यूं तो मित्रों में अपने, हंसे मुस्कराए

 

विकल्पों के मेले में लगा बैठे ठेले

भावनाएं बिकती हैं कोई भी ले ले

विपणन चाह की क्या कर ही पाए

यूं तो मित्रों में अपने, हंसे मुस्कराए

 

उत्तम छवि आकर्षण, हृदय में घर्षण

करीब है उसका, अभी कर दे तर्पण

नए को पाकर भी, क्या खिलखिलाए

यूं तो मित्रों में अपने हंसे मुस्कराए।

 

धीरेन्द्र सिंह

10.10.2023

19.31

सोमवार, 9 अक्टूबर 2023

हमास

 

युद्ध में जर्मन युवती नग्न लाश

झमाक, धमाक, नापाक यह हमास

 

अचानक रॉकेट से ताबड़तोड़ हमला

मोसाद से भी यह घात नहीं संभला

लाशों और घायलों की हो रही तलाश

झमाक, धमाक, नापाक यह हमास

 

मज़हब के नाम पर यह कैसी बेअदबी

बच्चों की मौत औरतों पर यौन सख्ती

यह युद्ध है या मौत पर अस्तित्ब आस

झमाक, धमाक, नापाक यह हमास

 

हर जान को मुमकिन करीब बंकर

हर जिंदगी को बना दिए मिट्टी कंकड़

यह युद्ध करके मिलेगा क्या खास

झमाक, धमाक, नापाक यह हमास

 

युद्ध कब प्रबुद्ध का रहा है हथियार

क्या मज़हब सिखाता जुल्म अत्याचार

मौत के तांडव में टूटेगा गलत विश्वास

झमाक, धमाक, नापाक यह हमास।

 

धीरेन्द्र सिंह

09.10.2023

16.31