शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

खंडित अभिव्यक्तियाँ

 उन्मुक्त अभिव्यक्तियाँ

न तो समाज में

न साहित्य में,

नियंत्रण का दायरा

हर परिवेश में,

सभ्य और सुसंस्कृत

दिखने की चाह

घोंटती उन्मुक्तता

छवि आवेश में,

खंडित अभिव्यक्तियाँ

उन्मुक्तता के दरमियां

भावनाओं को कर रहीं

कुंठित,

मानव तन-मन अब

अंग-खंड आबंटित।


धीरेन्द्र सिंह


रिक्त अंजुल

 मर्यादित जीवन 

बदलता है केंचुल

एक चमकीली आभा खातिर,

इंसानियत का प्यार

रिक्त अंजुल

उलीचता रहता है अख्तियार

बनकर शातिर,

दौड़ने का भ्रम लिए

यह रेंगती जिंदगी।


धीरेन्द्र सिंह


अजगर शाम

 शाम अजगर की तरह

समेट रही परिवेश

निगल गई

कई हसरतें,

आवारगी बेखबर

रचाए चाह की

नई कसरतें।


धीरेन्द्र सिंह

02.07.2021

शाम 06.17

लखनऊ

शाम का छल

 शाम अपनी जुल्फों में

लिए पुष्प सुगंध

हवा को करती शीतल

क्या दुलारती है सबको,

शाम करती है छल

 निस दिन अथक

तोड़ती है भावनात्मक बंधन

दे अन्य के भावों का चंदन,

त्याग देती है

पुराने हो चुके को

नए से कर निबंधन,

अब शाम

नहीं रही पहले जैसी

अक्सर बोले

वादे और जिंदगी की

ऐसी-तैसी,

शाम अकुलाई है

नए को पाई

पुराने को ठुकराई है,

नहीं बीतती अब शामें

बहकी-बहकी बातों में

प्रणय अचंभित लड़खड़ाए

स्वार्थ सिद्ध के नातों में।


धीरेन्द्र सिंह

02.07.2021

शाम 06.40

लखनोए।


गुरुवार, 1 जुलाई 2021

तुम

 तुम नयनों का प्रच्छा लन हो

तुम अधरों का संचालन हो

हृदय तरंगित रहे उमंगित

ऐसे सुरभित गति चालन हो


संवाद तुम्हीं उन्माद तुम्हीं

मनोभावों की प्रतिपालन हो

जिज्ञासा तुम्हीं प्रत्याशा तुम्हीं

रचनाओं की नित पालन हो


कैसे कह देती वह चाह नहीं

हर आह की तुम ही लालन हो 

हर रंग तुम्हीं कोमल ढंग तुम्हीं

नव रतिबंध लिए मेरी मालन हो।


धीरेन्द्र सिंह

मंगलवार, 29 जून 2021

व्हाट्सएप्प की नगरवधुएं


वह व्हाट्सएप्प पर

सक्रिय रहती है

प्रायः द्विअर्थी बातें

लिखती हैं 

और चले आते हैं

उसके चयनित पुरुष

टिप्पणियों में

रुग्ण यौन वर्जनाओं के 

लिए शब्द

जिसपर वह अवश्य चिपकाती है

अपनी मुस्कराहट

एक रूमानी आहट,

कोई कुछ भी बोल जाए

उसे फर्क नहीं पड़ता

जिसे चाहती है वही

उसके व्हाट्सएप्प में रहता,

पुस्तकें हैं उसे मिलती

चयनित पुरुषों के

प्रेम और यौन उन्माद की

कथाओं की पुस्तकें,

सभी पुरुष होते हैं

तथाकथित साहित्यिक

छपाए पुस्तकें

अपने पैसों से

खूब होती है गुटरगूं

इन नकलची लेखक जैसों में,

हिंदी लेखन की मौलिकता

कुचल रहीं यह नगरवधुएं

यदि मौका मिले तो पढ़िए

कैसे हैं पुरुष इन्हें छुए।


धीरेन्द्र सिंह


शुक्रवार, 25 जून 2021

तड़पे प्यास

 यह उम्र गलीचा

वह मखमली एहसास

समंदर ने कब कहा

पानी में तड़पे प्यास।


धीरेन्द्र सिंह