रविवार, 23 दिसंबर 2012

सुनिए यह पुकार


आर्य भूमि का क्यों भूले सदाचार
कुंठित कायरता और बलात्कार
इंडिया गेट पर आक्रोशित युवा वर्ग
लड़कियों ने दिखलाया शक्ति व प्रतिकार

दर्द लिए हमदर्द मौसम बड़ा सर्द
मशाल सा प्रज्वलित अपना अधिकार
लाठी चार्ज, आँसू गैस से दमन क्यों
प्रजातन्त्र देश है सुनिए यह पुकार

बस के नीचे लेट कर लड़कियों का विरोध
साहस भी है और वेदना लिए धिक्कार
एक महान कार्य यह युवा सब तैयार
देश हमारा भी है दमन होगा बेकार

इस धरा की है स्वर्णिम कहानी गूँजती
राजधानी में उठी फिर वही हुंकार
दिग–दिगंत में युवा भारत की गूंज
इस विरोध को सब करते हैं स्वीकार।



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
 अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
 दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2012

आप अधर हो आप सफर हो

शब्दों की पुड़िया में एहसासों की मिठाई
जब मिलती दिल खिलता आसमान अंगनायी
इस धरती पर कितने हैं खुशियाँ देने वाले
ऐसे इन्सानों को शत-शत है बधाई

शब्दों में जब दिल मुस्काकर मिलते हैं
नयन भींग जाते और मिल जाती नयी रुबाई
कितना सुंदर जीवन है अच्छे लोगों संग
बड़े नसीब से मिलती है पुलकित सी तरुणाई

काश करीब होते तो भर लेती यह बाहें
दो पलकों की छांह में खिलती एक अरुणाई
बातों के पुष्पों में मिलती नयी सुगंध
भावों की कश्ती में चाहत होती मदमायी

दिल में आप बसे हो अनुपम खिले-खिले हो
मेरी धड़कन मेरी तड़पन आपको भूल ना पायी
आप अधर हो आप सफर हो आप ही मेरी तृष्णा 
आप से मिलकर मेरी अभिलाषाएँ हैं भरमायी।




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

बुधवार, 29 अगस्त 2012

अनहद अद्भुत


अनहद अद्भुत अकस्मात होता है
तुम हो पास तो सबकुछ होता है

वलय भावनाओं की मरीचिका बन
दहन को शमित कर सघन बन
मन के सीपी का, मोती सोता है
सानिध्य में, सुगंध नयी बोता है

अल्प नहीं, पूर्ण नहीं बल्कि अविराम
राधा के कृष्ण जैसे सीता के राम
स्पंदित, आनंदित आह्लादित सोता है
लगन में मन मगन, ऐसे ही होता है

अनहद अद्भुत अकस्मात होता है
तुम हो पास तो सबकुछ होता है

व्योम सा बाहुपाश और विश्वास लिए
चाँद, सूरज, सितारों का उच्छ्वास लिए
धरा को विस्मित कर राग पिरोता है
गुंजित सरगम में फिर डुबोता है

पुष्प या वृक्ष समझूँ या कहूँ वाटिका
बावरी विह्वल हो या कठोर साधिका
नित अनंत सृजन, अंत ना होता है
ऐसा सानिध्य कभी जीवन ना खोता है

अनहद अद्भुत अकस्मात होता है
तुम हो पास तो सबकुछ होता है


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता 
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

आप से प्यार ना हुआ है

आप से प्यार ना हुआ है 
चुपके से एहसासों ने छुआ है 
सोचिये समझिए ना सकुचाईए
सावनी घटा सी बरस जाईये 


प्यार होता तो होती एक पुकार
मेरे एहसासों का आप हैं आधार 
दिग-दिगंत अपरिमित अनंत 
अगणित अद्भुदता आप दर्शाईए


सोचिए समझिए ना सकुचाईए
सावनी घटा सी बरस जाईए


सृष्टि को समझने की बड़ी आस है
इस रहस्य का राज़ आपके पास है 
व्योम की सुरभि, श्याम को झुकाईए
निरख रही पलकों को तो सजाईए


सोचिए समझिए ना सकुचाईए
सावनी घटा सी बरस जाईए


प्यार हो जाता लघु आपके समक्ष 
एहसासों के बन जाते कई कक्ष 
खंड-खंड जीवन को ना लुढ़काईए
पूर्णता पुरोधा बने गुर तो सिखलाईए 


आप से प्यार ना हुआ है 
चुपके से एहसासों ने छुआ है 
सोचिए समझिए ना सकुचाईए 
सावनी घटा सी बरस जाईए




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 22 जून 2012

स्वप्न नयनों से छलक पड़ते हैं


स्वप्न नयनों से छलक पड़ते हैं
बातें इरादों में दब जाती हैं
अधूरी चाहतों की सूची है बड़ी
चाहत संपूर्णता में कब आती है

चुग रहे हैं हम चाहत की नमी
यह नमी भी कहाँ अब्र लाती है
सब्र से अब प्यार मिले ना मिले
ज़िंदगी सोच यही हकलाती है

इतने अरमान कि सब बेईमान लगें
एहसान में भी स्वार्थ संगी-साथी है
दिल की तड़प, हृदय की पुकार  
आज के वक़्त को ना भाती है

प्यार के गीत लिखो प्यार डूबा जाय
इंसानियत निगाहों को ना समझ पाती है
फ़ेस बूक, ट्वीटर,एसएमएस की गलियाँ  
प्यार को तोड़ती, भरमाती हैं।



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

बुधवार, 13 जून 2012

श्याम घटा की रागिनी


कब सुन्दर लग जाता कोई
कब दिल को छू जाता है
एक पल का केवल मिलना
लगता जन्मों का नाता है

कहते हैं कि दृष्टि हो सुन्दर
सब सुन्दर लग जाता है
यदि ऐसा कहना सच है तो
दिल को हर क्यों ना भाता है

दिनों साथ रहता संग कोई
प्रीति अधजगी रहती सोई
दिल दृष्टि ना अकुलाता है
उठती कोई ना जिज्ञासा है

आप मधुभरी चाँदनी जैसी
श्याम घटा की रागिनी जैसी
ह्रदय प्यार यह छलकाता है
दिल से दिल का यह नाता है

कैसी प्रतीक्षा कैसा यह अनमन
छोड़िये दिल दिमाग की अनबन
दिल की चाहत को चुकाना है
बस प्यार से उन्हें बतलाना है.  





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

मंगलवार, 12 जून 2012

बरखा (बाल गीत)


बरखा रानी बूँद भर पानी
भर देती प्रकृति में रवानी
कोयल कूके,पत्ते सब गायें
धरा को मानो मिली जवानी

बादल नभ में दौड़े धायें
मेढक गली-गली टर्राएँ
चारों तरफ पानी ही पानी
बरखा बरसे लगे सयानी

पक्षी दुबके देख ठिकाना
हरियाली का गूंजे गाना
बरखा की चलती मनमानी
चिड़िया ढूंढे दाना-पानी

काले-काले घने बादल आये
बिजली चमके और डराए
चले सन-सन हवा सयानी
खिडकी भीतर आये पानी

बरखा है तो है जिंदगानी
मौसम भी लगता गुण ज्ञानी
रिमझिम-रिमझिम का संगीत
बरखा की है यही कहानी.   





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.