मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

तुम्हारे हाँ का संदेशा

मेरी मजबूरी है कि तुमसे बड़ी दूरी है
सोचता हूँ कि दिल कैसे करीब आयें
मुझे तुम याद करो इश्क़ आबाद करो
और हम चाहतों का नित सलीब पाएँ 

किसी से जुड़ जाना ज़िंदगी का तराना
मन यह मस्ताना भी नया नसीब पाये
कितने हैं रंग, अनेकों हैं तरंग-उमंग
आशिक़ी हो दबंग अनुभव अजीब पाएँ

तुम में चतुराई है गजब की गहराई है
तुमको सोचूँ तो मन में अदब आए
तुमसे हो बातें तो निखरे इंद्रधनुष
मिले संगत तो इश्क़ शबद गाए

हे प्रिये मेरा तो यही नज़राना है 
इश्क़ ही तो सभी मज़हब समझाए
ज़िंदगी चूम रही पल दर पल तुमको
तुम्हारे हाँ का संदेशा जाने कब आए.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

सत्य-असत्य

मार्ग है प्रशस्त कदम सभी व्यस्त
मंजिल को छूने की सब में खुमारी है
सत्य और असत्य का संघर्ष चहुंओर
निर्णय ना हो पाए कैसी लाचारी है

सत्य को असत्य बनाने की कोशिशें
असत्य की विजय रथ पर सवारी है
ताम-झाम लाग-लश्कर असत्य संग
फिर भी ना कैसे सत्य लगे भारी है

एक तरफ हैं खड़े असत्य से जो लड़े
असत्य के मुकाम पर भीड़ बड़ी भारी है
वह भी इंसान हैं जो असत्य से रहे लड़
और जो इंसान हैं उनकी क्या लाचारी है

सत्य की भट्टी में लौह पिघलता है
सत्य दग्ध सूर्य है तलवार दुधारी है
असत्य में है पद,पैसा और पाजेब
असत्य किसी की अनबोल ताबेदारी है.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

सोमवार, 26 मार्च 2012

संघर्षरत मेरी अमराई

एक युद्ध ज़िंदगी है, चहुं ओर है लड़ाई 
तुम ढाल भी हो और हो भाल के सौदाई 
समर की ना बेला कोई और ना विश्राम 
समझौता कहीं हो रहा कहीं विजय तो दुहाई 

स्वेद मिश्रित लहू है या लहू संग स्वेद
ज़िंदगी को भेद रहा फिर आत्मीय संवेद 
अथक परिश्रम निनाद किन्तु वही चौपाई 
भाग्य की विडम्बना में दुनिया है समाई 

जो मिला है उसको बचाने का हर जतन 
तन-मन की गति में भावनाओं का उफन
मिलन के उल्लास में खिलखिला रही जुदाई
मेरे अपने बन गए या कि फिर मति बौराई

बहुत जीवन बीत गया लगे मौसम रीत गया
साथ जिसका मिल गया स्वप्न सा बीत गया
उम्र जितनी बढ़ती जाये निखरे उतनी तरुणाई
एक तलाश, एक प्यास संघर्षरत मेरी अमराई.  


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

शक्ति, सामर्थ्य और कारवां


शक्ति, सामर्थ्य मिले शौर्य स्वतः आए
श्रेष्ठता स्वमेव कीर्ति पताका पा जाये
भस्मासुर मानिंद जब करे वह परीक्षण
कारवां में अबोला हताशा छा जाये

व्यक्ति की ओजस्विता सिमटी सीमित परिधि
समूह की तेजस्विता बनकर हर्षाए
निजता की भँवर में परिवेश को समेटना
स्वयं की गति में गति हो जाये

बड़प्पन मिलती कहाँ हैं बड़े बहुत यहाँ
महानता के आगे सब नत हो जाएँ
प्रत्यक्ष रहें मुग्धित अप्रत्यक्ष गुनगुनाएँ
एक आदर्श बना क्रमिक ढलते जाएँ

जो हैं पदांध करते बेवजह आक्रांत
प्रशांत को कर उद्वेलित मुसकाए
नासमझ प्रकृति न्याय समझ ना पाएँ
भेड़चाल में संग कारवां दे डुबाय ।




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

झुक गयी साँझ

झुक गयी साँझ एक जुल्फ तले
चाँद हो मनचला इठलाने लगा
सितारों की महफ़िलें सजने लगी
आसमान बदलियाँ बहकाने लगा

नीड़ के निर्वाह में जीव-जन्तु व्यस्त
चूल्हों में अभाव अकुलाने लगा
मान-मर्यादा के उलझन में उलझ
मकड़जाल फिर वही सुलझाने लगा

शाम का सिंदूरी आमंत्रण तमस में
राग संग रागिनी जतलाने लगा
गीत,स्वर रूमानियत के रस पगे
भावों को परिवेश बहलाने लगा

सूर्य सा तपता हुआ श्रम स्वेद बन
दिन को अपना क्लेश बतलाने लगा
साँझ,जुल्फ, चाँद ,सितारे सहमे
आह से वह ख्वाबों को जलाने लगा.
   

भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

बुधवार, 23 नवंबर 2011

प्यार के गीत लिखो




स्वप्न नयनों से छलक पड़ते हैं
बातें ख्वाबों में अक्सर दब जाती हैं
अधूरी चाहतों की सूची है बड़ी
चाहत संपूर्णता में कब आती है

चुग रहे हैं हम चाहत की नमी
यह नमी भी कहाँ अब्र लाती है
सब्र से अब प्यार भी मिले ना मिले
ज़िंदगी सोच यही हकलाती है

इतने अरमान कि सब बेईमान लगें
एहसान में भी स्वार्थ संगी-साथी है
दिल की तड़प, हृदय की पुकार  
आज के वक़्त को ना भाती है

प्यार के गीत लिखो प्यार डूबा जाय
इंसानियत निगाहों को ना समझ पाती है
फ़ेसबुक,ट्वीटर,एसएमएस की गलियाँ  
प्यार को तोड़ती, भरमाती हैं।

  



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

नारी नमन तुम्हें


और बोलो ना उदास दिल है बहुत
तुमको सुनने की तमन्ना उभर आई है
खुद से भाग कर तुम तक जाऊँ
फिर लगे रोशनी नस-नस में भर आई है

तुम ही हिम्मत हो, दृढ़ इरादे की डोर
भोर की पहली किरण जैसे पुरवाई है
तुम जब बोलती हो लगे गले ऊर्जा
तुमसे ही मांगती यह भोर अरुणाई है

कोमल, कंचनी काया में लचक खूब
हर आघात सह ले, अनगिनत बधाई है
आसमान से भी विशाल आँचल तले
ज़िंदगी हमेशा मंज़िल अपनी पायी है

मैं तुम्हें प्यार कहूँ या जीवनाधार
दे दिया अधिकार क्या खूब कमाई है
पौरुषता पर निरंतर कृपा अपार
नारी नमन तुम्हें गज़ब की अंगनाई है।   






भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.