मंगलवार, 6 अगस्त 2024

संभालिए

 कल की आदर्शवादिता दीखती कहां आज

दलदल में धंसता जा रहा संभालिए समाज


युवाशक्ति संग्रहित विद्यार्थी अनहोनी कर जाएं

नेतृत्व यदि चला गया उसका अंतर्वस्त्र लहराएं

यह कौन सी मर्दानगी पुरुषत्व का है मिजाज

दलदल में धंसता जा रहा संभालिए समाज


अधूरी अपूर्ण विद्यालयीन शिक्षकों का ज्ञान

धर्मावलंबियों का कैसे दबंग ऊंचा है मकान

देखिए छुपी शक्तियां विवेक को रहीं हैं माँज

दलदल में धंसता जा रहा संभालिए समाज


सकारात्मक के विपक्ष उभर रहीं नकारात्मकताएं

हवन करते पुजारी को आसुरी शक्तियां उलझाएं

आत्मिक रणदुदुम्भी से समाज को दे सही साज

दलदल में धंसते जा रहा संभालिए समाज।


धीरेन्द्र सिंह

06.08.2024

21.14



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