हवा भी चल रही बदलियों को गुमान है
भींगा देंगी अबकी यही तो अभियान है
बदलियां घिर रहीं, गरज रहीं, बरस रहीं
कितनी प्यासी हैं भिगाने को तरस रहीं
मन की बदलियों का मेघ को न ज्ञान है
भींगा देंगी अबकी यही तो अभियान है
घिरी बदलियां हों और छूती हुई सर्द हवा
मीठी सिहरन में हवाओं सा ना हमनवा
प्रवाह मंद जिंदगी का अभिनव तान है
भींगा देंगी अबकी यही तो अभियान है
भींगना मन के सावन का मनमौज है
बदलियों का इस कारण ही फौज है
हर एक चाहत का निज अभिज्ञान है
भींगा देंगी अबकी यही तो अभियान है।
धीरेन्द्र सिंह
12.09.2023
06.24
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