ऑनलाइन प्यार
चाहतें बूंद सी माथे पे चमक जाती हैं
जब भी वह ऑनलाइन नजर आती हैं
न जाने कौन होगा चैट हो रही होगी
एक चाह कई मंजिल डगर जाती है
अपने से ज्यादा उनकी हरक़तों की जांच
बेचैनियां लिए अंदेशे उभर जाती हैं
हमसे करती हैं चैट झूमता है मौसम
भींगो कर ऐसे अक्सर गुजर जाती है
रह-रह कर चिहुंक मोबाइल उठा लेना
कितनी बेदर्दी से एहसास कुतर जाती हैं।
धीरेन्द्र सिंह
01.04.2023
20.27
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें