मिश्री घुली नमी हवा की
संदली हवा उल्लास है
कौन दिशा से आया झोंका
महका कोई कयास है
पत्ते सा दिल झूम उठा
मंजरियों में विश्वास है
आकर्षण से बंध कर आए
जिसको जिसकी तलाश है
बंधन जाने हर पल चंदन
अभिनंदन निहित उजास है
दूर से आए सागर तीरे
तट पर बिखरी प्यास है
वेग हवा का हूँ हूँ बोले
उठे बवंडर आस है
दूर देर तक टिका वही
जिसका बवंडर खास है।
धीरेन्द्र सिंह
28.03.2023
22.33
बहुत सुंदर!!
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