बुधवार, 12 जून 2024

जिद्दी

 सुबह ढल रही है उदय शाम हो

कहो ज़िद्दी ऐंठन भरी तान हो


प्रेम की आपकी कई परिभाषाएं

एक समझें कि दूजी उभर आएं

नए प्रेम की आवधिक गान हो

कहो ज़िद्दी ऐंठन भरी तान हो


एक के साथ दूजा करे आकर्षित

लपक कर बढ़े कर पहला शमित

दूजा भाया नहीं ना इत्मिनान हो

कहो ज़िद्दी ऐंठन भरी तान हो


साहित्य छूटा क्या है एम ए खूंटा

हुआ जब अपमान थे अपने अजूबा

बिखर कर हो भंजित लिए गुमान हो

कहो ज़िद्दी ऐंठन भरी तान हो।


धीरेन्द्र सिंह

12.03.2024

20.55




मंगलवार, 11 जून 2024

फरीदाबाद

 उसके फोन में इतने नाम हैं

लगे सब ही उलझे, बेकाम हैं

हर किसी से हो बातें आत्मीय

सब सोचें संबंध यह सकाम है


क्यों लरजती है इस तरह लज्ज़ा

चूनर लटक रही घुमाती छज्जा

जो था कभी करीब गुमनाम है

सब सोचें संबंध यह सकाम है


45 वर्ष में बदन भरने लगा है

प्रसंग भावुकता में बढ़ने लगा है

बंद फेसबुक सक्रिय टेलीग्राम है

सब सोचें संबंध यह सकाम है


नारी शक्ति, स्वन्त्रत आसमान

नारी स्वयं में है पूर्ण अभिमान

फरीदाबाद जिंदाबाद प्रणय धाम है

सब सोचें संबंध यह सकाम है।


धीरेन्द्र सिंह

12.06.2024


08.30

अनुरागी

 एकल प्रणय प्रचुर अति रागी

खुद से खुदका गति अनुरागी


तन की दहकती हैं खुदगर्जियाँ

मन में आंधियों सी हैं मर्जियाँ

समय की धूनी पल क्या पागी

खुद से खुदका गति अनुरागी


काया कब कविता सी रचि जाए

अनुभूतियों में बिहँसि धंसि जाए

आंचल को गहि सिमटी हिय आंधी

खुद से खुदका गति अनुरागी


प्रश्रय प्रीत मिले तो प्रणय प्रयोज्य

आश्रय ढीठ खिले लो तन्मय सुयोग्य

उठ बैठा संग साड़ी जैसे प्रखर वादी

खुद से खुदका गति अनुरागी।


धीरेन्द्र सिंह

11.06.2024

17.43




सोमवार, 10 जून 2024

आसक्तियां

 प्यार से जरूरी है प्यार की अभिव्यक्तियां

बहुत जरूरी हैं जतलाएं गहन आसक्तियां


मंद मुस्कराहट अधर या कातिल अँखिया

मृदु छुवन स्पर्श कहें तन्मय हो बतियाँ

कोई समझे कोई कयास लगाए युक्तियां

बहुत जरूरी हैं जतलाएं गहन आसक्तियां


भौतिकता की आंधी में लुकी-छिपी संवेदना

तार्किकता की कसौटी पर मुड़ी-तुड़ी चेतना

व्यक्ति प्रयास करे भर जाएं मन रिक्तियां

बहुत जरूरी है जतलाएं गहन आसक्तियां


पुष्प नहीं उपहार नहीं श्रृंगार अति जरूरी

प्यार कब समझा प्यार की कोई मजबूरी

एक पतंग एक छोर उड़ान की नव सूक्तियाँ

बहुत जरूरी है जतलाएं गहन आसक्तियां।


धीरेन्द्र सिंह

10.06.2024


19.58


शुक्रवार, 7 जून 2024

दौड़ते जा रहा

 दाल उबल रही भोजन की आस है

पेट का नाम ले संभावना हताश है

यह एक क्षद्म है या स्व छलावा

दौड़ते जा रहा कहे जिंदा लाश है


रूठ गयी कविता बोली भाव नहीं

प्यार पर लिखते हो प्यार है कहीं

मोहब्बत में तोहमत चलन खास है

दौड़ते जा रहा कहे जिंदा लाश है


कविता बोली सबकुछ है यहां संभव

जीत के निनाद में सत्य है पराभव

दौड़ते हुए पर भी नियंत्रण खास है

दौड़ते जा रहा कहे जिंदा लाश है


समय, काल, भाल देख कविता तौले

सर्जन का मूल मंत्र वह हौले से बोले

प्रत्येक रचना में मुखर कोई फांस है

दौड़ते जा रहा कहे जिंदा लाश है।


धीरेन्द्र सिंह

07.06.2024

22.51




गुरुवार, 6 जून 2024

लोक सभा 24

 धैर्य सहित प्रतीक्षा सदीक्षा की आस्था

राम मंदिर निर्माण जन-जन की आशा

भव्य निर्माण में दिव्य उपलब्धियां हैं

सरकार, न्यायालय ने रोका था तमाशा


“राम आएंगे” की थी अनुगूंज चहुंओर

असंख्य कदम अयोध्या नवपरिभाषा

“जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे”

“उनको” पूर्ण ला ना पाए, सबकी जिज्ञासा


लोक सभा चुनाव निर्णय है सुखदाई

अयोध्या परिणाम असंख्य की हताशा

कैसे एक सपाट झपट झकझोर दिए

कौन जुगत से बज ना सका वह ताशा


व्यथित हृदय कहे अयोध्यावासी बहके

हुआ चुनाव न चहके भूले रामवासा

राम आ गए धाम पा गए अयोध्यावासी

रोजी-रोटी, प्रगति-प्रसंस्करण मधुवासा।


धीरेन्द्र सिंह

06.06.2024

17.34



बुधवार, 5 जून 2024

तुम चलोगी

 प्रणय पग धीरे-धीरे

मन के तीरे-तीरे


कहो, तुम चलोगी

संग मेरे बहोगी

सपनो को घेरे-घेरे

मन के तीरे-तीरे


आत्मिक है निमंत्रण

सुख शामिल प्रतिक्षण

उमंग मृदंग फेरे-फेरे

मन के तीरे-तीरे


व्यग्र समग्र जीवन

चतुराई से सीवन

छुपाए तागे उकेरे-उकेरे

मन के तीरे-तीरे


आओ करें मनमर्जियाँ

अनुमति की ना मर्जियाँ

नव उद्गम धीरे-धीरे

मन के तीरे-तीरे।


धीरेन्द्र सिंह

06.06.2024

05.16