शनिवार, 23 मार्च 2024

ओ मनबसिया

 सब मनबतिया जग सारी रतिया, ओ मनबसिया

चांद पिघल तकिया संग झूमे, झिलमिल रतिया


 अभिलाषाओं के आंगन में दृग हुलसित छाजन

हृदय उल्लसित तो करे कौन उसका वाचन

गहन तरंगों में ध्वनि भ्रमित भ्रमर नीदिया

चांद पिघल तकिया संग झूमे, झिलमिल रतिया


सांखल खटकी द्वार की हिचकी पाहुन आए

ठग गई रात महक के कोरी खुद ही उफनाए

एक निपट सौ जुगत हार बैठीं सब नीतियां

चांद पिघल तकिया संग झूमे, झिलमिल रतिया


मन के कितने रंग, उमंग अबीर और गुलाल 

पुलकित भाव रंग संग कपोल रचित भाल

ताल नई कुछ चाल नई अभिनव ठाढ़ी कृतियाँ

चांद पिघल तकिया संग झूमे, झिलमिल रतिया।


धीरेन्द्र सिंह


25.03.2024

08.12

शुक्रवार, 22 मार्च 2024

भोर में

 भोर में खुलती हैं पलकें

हृदय में आपका स्पंदन

पलक फिर बंद होती हैं


प्रणय का होता है वंदन


सुनती आप हैं क्या निस

नेह का उन्मुक्त निबंधन

स्मरण आपकी, आदत अब

सुगंधित, शीतल सा चंदन


उदित होतीं हृदय में क्रमशः

निज आलोक का समंजन

आप से ही प्रकाशित हूँ

तरंगित आपसे है सब नंदन


कब से बिस्तर है मुग्धित

भोर करती आपका अंजन

चिड़िया चहचहाती आप सी

करवटें ढूंढती आपका आलंबन


जगाती रोज हैं मुझको ऐसे

जैसे भोर का आपसे बंधन

बदन में टूटन अनुभूतियां भी

आप ही आप का है गुंजन।


धीरेन्द्र सिंह

25.03.2024

04.39

गुरुवार, 21 मार्च 2024

नारी

 सघन हो गगन हो मनन हो

सहन हो समझ हो नमन हो


सदियों से प्रकृति में है बसेरा

देहरी के भीतर की हैं सवेरा

जीवन डगर पर भी चमन हो

सहन हो समझ हो नमन हो


अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है नया

भारतीय संस्कृति में यह ना नया

नारी पर लेखन का क्यों चलन हो

सहज हो समझ हो नमन हो


अथक श्रमिक है परिवार की धूरी

आदि शक्ति वह ना कोई मजबूरी

बुद्धिमान, कीर्तिमान की अगन हो

सहज हो समझ हो नमन हो।


धीरेन्द्र सिंह

21.03.2024


20.05

बुधवार, 20 मार्च 2024

दिल दहल गया

 

प्यार का रूप देख जग दहल गया

कदम थे कोमल तूफान टहल गया

 

मीठी बातों में अपनत्व की झंकार

छत पर उन्मत्तता बहकी लगे बयार

व्योम का असीमित रंग विकल भया

कदम थे कोमल तूफान टहल गया

 

बच्चों की मासूमियत भरा हुआ प्यार

बालक की निर्मलता सी प्रीत फुहार

निर्मोही देह से ले दिल सकल गया

कदम थे कोमल तूफान टहल गया

 

प्यार के उमंग में था होली का तरंग


क्या पता था छत पर कटेगी पतंग

विश्वास कैसे प्यार मर्दन चपल किया

कदम थे कोमल तूफान टहल गया।

 

धीरेन्द्र सिंह

20.03.2024

20.08

गौरैया मेरी

 गौरैया दिवस 20 मार्च 2024 के लिए :-


मेरे घर मुंडेर ना कोमल छैयां

आती न मुंडेर अब वह गौरैया


ना दाना का मोह ना चाहे पानी

फुदकन नहीं उसकी है नादानी

घूम रही भटक अब ताल-तलैया

आती न मुंडेर अब वह गौरैया


मेरे मुंडेर पर थी फुदकन आजादी

था मैं बतियाता बिना किए मुनादी

किसी ने बहकाया कर ता-ता थैया

आती न मुंडेर अब वह गौरैया


गर्दन और आंखे थी कितनी चंचल

भोली थी सह


ज थी जैसे कलकल

समझ गई बहेलियों से घिरी है नैय्या

आती न मुंडेर अब वह गौरैया।


धीरेन्द्र सिंह

20.03.2024

12.53

मंगलवार, 19 मार्च 2024

वहीं से चले

 वहीं से उतर कहीं वाह हो गए

वहीं से चले थे वहीं राह हो गए


अकस्मात है या कि कोई बात है

अनुबंध है या वही जज्बात है

कदम थे भटके या राह खो गए

वहीं से चले फिर वहीं राह हो गए


कहीं से उतरना ना होता सहज

उतरती सहजता या कि समझ

उखड़ता कहां, गहन चाह बो गए

वहीं से चले फिर वहीं राह हो गए


पीटें कनस्तर कहें यह है ढोल

मन की धुन में मन के हैं बोल

बेफिक्री इतनी व्योम अथाह हो गए

कहीं से चले फिर वहीं राह हो गए


कहें भूल गए पर ना भुला जाता

हृदय कब तिरस्कारे जो मन भाया

खयालों में बंध सुप्त प्रवाह हो गए

वहीं से चले फिर वहीं राह हो गए।


धीरेन्द्र सिंह


19.03.2024

14.48

शोख रंग

 शोख रंग अब जाग रहे हैं

मन ही मन कुछ ताग रहे हैं

मौसम है कुछ कर जाने का

संग अभिलाषाएं भाग रहे हैं


अबीर-गुलाल कपोल से भाल

शेष रंग में निहित धमाल

मन अठखेली में पाग रहे हैं

संग अभिलाषाएं भाग रहे हैं


सुसंगत है यहां रंग बरजोरी

हैं रंग दृगन की कमजोरी

रंग शोख तुम्हें साज रहे हैं

संग अभिलाषाएं भाग रहे हैं


मन कुलांच लागे नहीं साँच

मन अपने को रहता माँज

रंग उमंग ही भाग्य रहे हैं

संग अभिलाषाएं भाग रहे हैं।


धीरेन्द्र सिंह

19.03.2024

04.37