मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

विश्व पुस्तक मेला


ना भीड़ ना ठेलमठेला

जेब में न हो अधेला

हिंदी का रंगीन है ठेला

देखें विश्व पुस्तक मेला


प्रकाशकों के सजे स्टॉल

गीत एक अलग ताल

खेल सांप और संपेला

देखें विश्व पुस्तक मेला


हिंदी चिंदी बन बैठी

रद्दी भाव सुधि पैठी

थोक भाव विक्रय खेला

देखें विश्व हिंदी मेला


प्रकाशक करें कदमताल

कुछ वक़्ता स्टॉल-स्टॉल

हिंदी की कैसी यह बेला

देखें विश्व हिंदी मेला


हिंदी में भी बड़े मदारी

कर्म छोड़ शब्द जुआरी

ख्याति, प्रसिद्धि की बेला

देखें विश्व हिंदी मेला।


धीरेन्द्र सिंह


सोमवार, 13 फ़रवरी 2023

वेलेंटाइन डे

 

वेलेंटाइन महोत्सव पर दो कविताएं :-

आह! प्रणय
ओह! प्रणय
भावनाओं की नर्मियाँ
दो दिलों के दरमियाँ;

मन के गुंथन
चाहत हो सघन
कैसी यह खुदगर्जियाँ
दो दिलों के दरमियाँ

कह रही धड़कनें
बढ़ रही तड़पनें
मिलन की सरगर्मियां
दो दिलों के दरमियाँ

व्यर्थ है प्रतिरोध
सजग है निरोध
सुसज्जित हैं अर्जियां
दो दिलों के दरमियाँ।

धीरेन्द्र सिंह

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वेलंटाईन डे😊

फूल मुस्कराए
सुगंध महकाए
भावना का खेल
दिवस प्यार मेल

फोन से बातें
व्हाट्सएप्प छांटे
चुपके बढ़े बेल
दिवस प्यार मेल

दैहिक दांव
शहर या गांव
कईयों से मेल
दिवस प्यार मेल

नाम वेलंटाईन
कलमुँही डाईन
प्यार बहे तेल
दिवस प्यार मेल

कैसी संस्कृति
रुग्ण ऐसी मति
मिल बनो भेल
दिवस प्यार मेल

झूठे दिखावे
तृष्णा बुलावे
जिस्म मानो पचमेल
दिवस प्यार खेल

मीठी रसधार
एकदिवसीय प्यार
उद्दंडता का रेलमपेल
दिवस प्यार खेल।

धीरेन्द्र सिंह

बुधवार, 7 दिसंबर 2022

कविता

 वह कभी नहीं चाहती

कविता लिखूं और

कर दूं पोस्ट उसे

बल्कि

उलाहने देते 

सजा देती है

मेरी कविता को

किसी उपयुक्त चित्र

या फोटो से

और 

उस रचना में ढल

बन जाती है

खुद कविता

कद्रदान लोग

करते हैं लाइक 

यह सोचकर कि

एक अच्छी कविता लिखा हूँ।


धीरेन्द्र सिंह

सोमवार, 14 नवंबर 2022

रंगदानी गुजरिया

 जतन कीन्हा अनजानी डगरिया

वतन चिन्हा रंगदानी गुजरिया


सीमा पर प्रहरी भीतर लहरी

रिश्ता पकड़ हर डोर ठहरी

अजब-गजब लागे नजरिया

वतन चिन्हा रंगदानी गुजरिया


सिंदूर लगे कपाल का दिव्य भाल

सपूत बन सैनिक मजबूत ढाल

गर्वित मुहल्ला संग नगरिया

वतन चिन्हा रंगदानी गुजरिया


ढंग है तरंग है सोच भी पतंग

गांव-गांव गीत और शहर मृदंग

झूमे देश गर्वभरी ले लहरिया

वतन चिन्हा रंगदानी गुजरिया।


धीरेन्द्र सिंह


दुआ

 एक मोटी परत धूल

छंट रही बादलों सी

मन लगा स्वतंत्र हुआ

ना जाने लगी किसकी दुआ


एक कोमल पाश रचनात्मक

पल प्रति पल सृजनात्मक

लेखनीय अर्चना को छुवा

कौन था वह हमनवां


चुन लिया पथ अलग

धूनी नई जगा अलख

कौन किससे अलग हुआ

विश्वास एक गरल हुआ


लग रहा था कैद

पर था दिल मुस्तैद

भूमिका प्रदर्शन मालपुआ

भ्रमित होकर बुर्जुआ।


धीरेन्द्र सिंह


रविवार, 13 नवंबर 2022

चलन

 देह दलन

कैसा चलन


व्यक्ति श्रेष्ठ

आवश्यकता ज्येष्ठ

विवशता लगन

कैसा चलन


प्रदर्शन परिपुष्ट

प्रज्ञा सुप्त

वर्चस्वता सघन

कैसा चलन


शौर्य समाप्त

चाटुकारिता व्याप्त

अवसरवादिता मनन

कैसा चलन


देह परिपूर्णता

स्नेह धूर्तता

प्यार गबन

कैसा चलन।


धीरेन्द्र सिंह


यादें

तिरस्कृत प्यार

जानबूझकर हो

या हो अनजाने में,

यादें उठती

भाप सरीखी उड़ती

घर हो या मयखाने में;


सुंदर हो बाहुपाश

हो समर्पित विश्वास

यादें मिले तराने में,

कौन बहेलिया 

बहलाए सांस

बदले निजी जमाने में;


अनुगामी यादें

टूटे ना वह नाते

त्यजन गरमाने में,

वशीकरण वशीभूत

भावनाओं का द्युत

जीवन को भरमाने में;


दूरी कैसी

लिप्सा मजबूरी जैसी

चाहतें हर जाने में,

जानेवाले जाएं कहां

यादों से रहे नहा

युग्मित गुसलखाने में।


धीरेन्द्र सिंह