शनिवार, 10 जून 2017

तीन बजे रात से तुम्हें सोचते रहा
जैसे नमाज़ी सेहरी में मशगूल
ईश्वर प्यार ही तो है, सब करें
चांद की ख्वाहिश लिए उसूल

भोर की मस्जिद की दिखें हलचलें
नमाज़ी की नमाज़ हो रही कुबूल
भोर की हलचलें आरम्भ हो चलीं
सेहरी मिलने इफ्तारी को दे रही तूल

दिल में आया तुम्हारा खयाल उठ गया
भोर पाकीज़गी के शोर में मशगूल
तुम भी किसी दुआ हेतु एहसासी सजदा
और रहमत हो मिल जाओ जैसे रसूल।

सोमवार, 5 जून 2017

तुम्हारी पलकों ने मेरी पलकों को छुआ
आंखें खुली, सुबह धुली-धुली, दे दुआ

यह स्वप्न था या एहसास था ना जानूँ
पलकों में भोर का जल गया वही दिया
रोशन हो उठा दिल भावनाओं का झिलमिल
ओ प्रिये क्या सोच लिया क्या यह किया

तुम साँसों की डोर हो मेरी चितचोर हो
तुमसे मिलन चाह चलन झूमता हिया
तुम पंखुड़ियों सी कोमल, नदिया सी कल-कल
अरमानों की कश्ती में संग कहां चल दिया

प्यार हुआ, इकरार हुआ, मिली ईश्वरीय दुआ
तुम पूजा की थाल सी मैं मन्नतों की प्रक्रिया
तुम कामायनी, विश्व प्रदायनी, धरती स्वरूपा
मैं आराधक, तुम्हारा साधक, प्रोन्नत कितना किया

ओ प्रिये तुम्हारी पलकों ने मेरी पलकों को छुआ
मन मुग्धित हो मगन हुआ, एहसासी यह धुआं।

शुक्रवार, 26 मई 2017

आज निशा निमंत्रण है
हृदय भी किए प्रण है
चांदनीं में डूब नहाए मन
स्पंदनों से गूंजे हर कण-कण है।

                       -2-
आज निशा निमंत्रण है
हृदय का मुक्त भ्रमण है
चांदनीं बिखरी सकुचाई सी
चंदा कहे क्या रमण है।

                           -3-
आज निशा निमंत्रण है
हृदय करे कुछ संग्रहण है
चांदनीं बिखरी जुल्फों सी
मुग्धित हर पल - क्षण है।

गुरुवार, 25 मई 2017

मन का आचमन हुआ, अचंभित है मन
सब कुछ मिलाकर मन को तुम कर दिया
पलकों में स्वप्न हो अधीर कर रहा विचरण
अपनी हो कोई एक राह मन ढूंढ ला दिया

जेठ की तपिश सा लगे तुम बिन होना तो
सावन की रिमझिम सा है तुमने भींगा दिया
बूंदों सा भाव टपटपाते मन में थिरक रहे
ओरी से गिरते जल सा निरर्थक बहा दिया

मिलने का यह मिलन सदियों का है चलन
जलन सीने में हो रही यह क्या जला दिया
कभी बहकने लगे मन तो हो जाए अनमन
घनघन कारे बदरा संग जिया को उड़ा दिया

सब खो गया तुम में, मैं से ढला हम में
हमने हिया में सप्तरंगी सा सजा दिया
भविष्य के डगर के हैं हम गुप्त से राही
कभी उम्मीद, कभी भय तो जय को जगा दिया।

सोमवार, 15 मई 2017


 प्यार भरी दे रहीं धमकियां
कुछ तो न किया क्यों मियां

उनके तसव्वुर में बोल गया
छुपाया है जो हमारे दरमियाँ

बदगुमानी न बदमिजाजी है
हर्फ़ समझें न बना दें सुर्खियां

बेमुरव्वत कब रही मोहब्बत
तलाशे मन क्यों एहसासी सर्दियां

ना तराशो ना अब और लावण्यमयी
बुत बना दोगी हँसेगी सखियां।

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

हद है कि इश्क़ अब दीवान हो गया
इंसान भी गुम होकर महान हो गया

इश्क़ तकिया कभी बिछौना सा बनाएं
आरामगाह तो कभी अभियान हो गया

उनके गेसुओं में उलझने का न मौका 
तत्काल टिकट सा इश्क़ सामान हो गया

किसको पड़ी निगाहों में उतरने की फिक्र आज
अब यूं लगे कि इश्क़ बेजुबान हो गया

सिर्फ बाहों के घेरे के अधिकांश चितेरे भरे
झटपट फटाफट लिपट का कद्रदान हो गया

धडकनों, तड़पनों, उलझनों का मज़ा भूले
इश्क़ एहसास ना रहा बड़ा नादान हो गया।
कुछ कुछ ज़िन्दगी सिखलाने लगी है
दे इश्किया मिजाज बहलाने लगी है

वर्षों से जिनके साथ कट रही है जिंदगी
क्या हुआ कि ज़िन्दगी ही फुसलाने लगी है

एक वह शख्स मेरी ज़िंदगी में छाए इस कदर
किसी भी छाए में याद खूब गुदगुदाने लगी है

उनके पहलू में भी दरमियाँ आ जाये वह हरदम
भरम रहे कि उसकी अंगुलियां सहलाने लगी है

किसी के साथ ज़िन्दगी किसी के पास ज़िन्दगी
मोहब्बत इल्म बनकर क्यों इठलाने लगी है

नहीं गंवारा उनकी बाहों का बंधन कसम से
दिल रोए और जिस्म जुल्म उठाने लगी है

किस मोड़ पर मिले हम कि ना विद्रोह दम
नए हमदम की चाहत रोज रुलाने लगी है।