रविवार, 19 अप्रैल 2015

तुम हो मेरे साथ तो

ज़िंदगी की कैसी यह चाल है 
ऊबड़ खाबड़ अनचीन्ही टाल है 
मंद है तो द्वंद है कभी अति प्रचंड 
तुम हो मेरे साथ तो एक ताल है 

सागर के थपेड़ों का था एक खौफ 
जीवन प्रवाह में तो कई कमाल है 
शीर्ष पर आसीन भूमि पर गिरे 
वर्चस्वता के लिए वर्चस्व का अकाल है 

तुम ना होती साथ तो होता क्या 
हर कदम पर चुनौतियों का द्वारपाल है 
तुम हो शृंगारपूरित या कि शक्तिस्वरूपा 
तुमसे ही उन्नत यह भाल है 

नर नारी का सम्मिश्रण सफल जीवन 
एक अकेला तो महज एक काल है 
नारी है आधार जीवन महल का सशक्त 
नर तो सामाजिक सक्रिय चौपाल है। 



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शनिवार, 8 जून 2013

तुम्हारे लिए

एक बार मेरे -ख़यालों के दरमियाँ
तेरे हुस्न का नशा एहसास नर्मियाँ
देता है मुझे बांध ऐसी नाज़ुक डोर से 
छा जातीं हैं दिल पर अनजान बदलियाँ 

मेरी परिधि की सीमा छोटी या बड़ी
मिलती हो तुम खड़ी उढ़की ले खिड़कियाँ
गलियों से गुजरना आसान ना लगे 
नज़रों से लोग देते हैं बेखौफ घुड़कियाँ 

बदनाम ना हो जाऊँ पर तुमको पा जाऊँ 
कैसे तुम्हें सुनाऊँ चाहत की सिसकियाँ 
खिंचता हूँ तुम्हारी ओर ना ओर ना छोर 
दिल करता बड़ा शोर अब लो ना चुटकियाँ।  



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
 दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

सोमवार, 24 दिसंबर 2012

तंत्र ज़िंदगी के


मेरी व्यथा, मात्र वेदना नहीं है
सत्य यह कि, कहीं चेतना नहीं है
संघर्ष के जहां में, बस कमान लिए  
लक्ष्य की प्रतीति, पर भेदना नहीं है

तंत्र ज़िंदगी के सब, स्वतंत्र लगे
हम क्या लगे कि, बस यंत्र लगे
मंत्र कोई अपना असर भूल जाये
नियंत्रण कहीं और देखना कहीं है

क्षुब्ध है वही, जो यहाँ प्रबुद्ध है
गुप्त है वही यहाँ, लगे जो सुबुद्ध है
परत दर परत, उखड़ रही हैं सलवटें
एक सहमे को पकड़, कहें यही है

आपका व्यक्तित्व हमेशा है रुपहला
दृष्टि जो देखे उधर तो नज़र चला
एक आकर्षण है पर कई दुमछला
निर्णय तो कई पर योजना नहीं है।     



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता 
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

नारी


जीवन, जगत, जश्न भरी किलकारी

संभव वहीं जहां पुलकित है नारी

व्योम सी विशालता धारा सा सहन
सूरी सी प्रखरता चन्दा सी शीतल न्यारी
सृष्टि की रचयिता समाज की सशक्तता
प्रखरता, प्रांजलता,प्रस्फुटन की क्यारी

एक गहन वृक्ष है और सघन छांव
संरक्षण, सुरक्षा, संरक्षा, सुधि सारी
परिवार, समाज और देश देखे एकटक
जीत का प्रयास करे विजय की तैयारी

धन्य है समाज पाकर यह कोमलता
सौम्य, शांत, सहृदय, सुगम सुकुमारी
पर प्रचंड अति विहंग, दबंगता से दबंग
विविधता विस्तार कर रचे नए फुलवारी।    

   



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

रविवार, 23 दिसंबर 2012

सुनिए यह पुकार


आर्य भूमि का क्यों भूले सदाचार
कुंठित कायरता और बलात्कार
इंडिया गेट पर आक्रोशित युवा वर्ग
लड़कियों ने दिखलाया शक्ति व प्रतिकार

दर्द लिए हमदर्द मौसम बड़ा सर्द
मशाल सा प्रज्वलित अपना अधिकार
लाठी चार्ज, आँसू गैस से दमन क्यों
प्रजातन्त्र देश है सुनिए यह पुकार

बस के नीचे लेट कर लड़कियों का विरोध
साहस भी है और वेदना लिए धिक्कार
एक महान कार्य यह युवा सब तैयार
देश हमारा भी है दमन होगा बेकार

इस धरा की है स्वर्णिम कहानी गूँजती
राजधानी में उठी फिर वही हुंकार
दिग–दिगंत में युवा भारत की गूंज
इस विरोध को सब करते हैं स्वीकार।



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
 अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
 दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2012

आप अधर हो आप सफर हो

शब्दों की पुड़िया में एहसासों की मिठाई
जब मिलती दिल खिलता आसमान अंगनायी
इस धरती पर कितने हैं खुशियाँ देने वाले
ऐसे इन्सानों को शत-शत है बधाई

शब्दों में जब दिल मुस्काकर मिलते हैं
नयन भींग जाते और मिल जाती नयी रुबाई
कितना सुंदर जीवन है अच्छे लोगों संग
बड़े नसीब से मिलती है पुलकित सी तरुणाई

काश करीब होते तो भर लेती यह बाहें
दो पलकों की छांह में खिलती एक अरुणाई
बातों के पुष्पों में मिलती नयी सुगंध
भावों की कश्ती में चाहत होती मदमायी

दिल में आप बसे हो अनुपम खिले-खिले हो
मेरी धड़कन मेरी तड़पन आपको भूल ना पायी
आप अधर हो आप सफर हो आप ही मेरी तृष्णा 
आप से मिलकर मेरी अभिलाषाएँ हैं भरमायी।




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

बुधवार, 29 अगस्त 2012

अनहद अद्भुत


अनहद अद्भुत अकस्मात होता है
तुम हो पास तो सबकुछ होता है

वलय भावनाओं की मरीचिका बन
दहन को शमित कर सघन बन
मन के सीपी का, मोती सोता है
सानिध्य में, सुगंध नयी बोता है

अल्प नहीं, पूर्ण नहीं बल्कि अविराम
राधा के कृष्ण जैसे सीता के राम
स्पंदित, आनंदित आह्लादित सोता है
लगन में मन मगन, ऐसे ही होता है

अनहद अद्भुत अकस्मात होता है
तुम हो पास तो सबकुछ होता है

व्योम सा बाहुपाश और विश्वास लिए
चाँद, सूरज, सितारों का उच्छ्वास लिए
धरा को विस्मित कर राग पिरोता है
गुंजित सरगम में फिर डुबोता है

पुष्प या वृक्ष समझूँ या कहूँ वाटिका
बावरी विह्वल हो या कठोर साधिका
नित अनंत सृजन, अंत ना होता है
ऐसा सानिध्य कभी जीवन ना खोता है

अनहद अद्भुत अकस्मात होता है
तुम हो पास तो सबकुछ होता है


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता 
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.