गुरुवार, 21 अगस्त 2025

सलवटें

सलवटें नहीं होती
सिर्फ बिछी चादर में
व्यक्तित्व भी होता है भरा
असंख्य सलवटों से
कुछ चीन्हे कुछ अनचीन्हे,

नित हटाई जाती है
सलवटें चादर की
पर नही हटाता कोई
व्यक्तित्व की सलवटें
प्रयास जाते हैं थक,

कैसे बना जाए
विराटमना
निर्मलमना,
घेरे जग का कोहरा घना,
आओ छू लो
मन मेरा, मैं तेरा
बन चितेरा,

ना
प्यार नहीं आशय
प्यार तो है हल्का भाव
भाव है आत्म मिलन,
सलवटें प्यार से 
मिटती नहीं,
आत्मा जब आत्मा से
मिलती है
चादर व्यक्तित्व की
खिंचती है
तो हो जाता है
आत्मबोध,

आओ मिलकर
व्यक्तित्व चादर का
खिंचाव करें
संयुक्त खिलकर
सलवट रहित व्यक्तित्व का
निभाव करें।

धीरेन्द्र सिंह
21.08.2025
13.56



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