वैचारिक बूंदें स्वाति नक्षत्र समान
भाव मिलन से निर्मित हो संज्ञान
अभिव्यक्तियां सृष्टि सदृश अनुगामी
कहना-सुनना भी व्यक्तिपरक विधान
इस समूह में नित सब, कुछ कहते
सबका, सब ना सुनते, देकर ध्यान
यहीं विचार प्रमुख होकर है कहता
शब्द से पहले है विचारों का रुझान
एक विषय पर एक भाव क्या लिखना
कविता है युवती चाहे भांति-भांति गहना
सजी-धजी नारी करती है ध्यानाकर्षण
अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन करे निर्मित अंगना
कविता बहुत लजीली-सजीली अनुरागी
कविता आक्रामक जब हो कठिन सहना
तुमसी जैसी ही लगती है क्यों कविता
तुमको ही लिख दूं सखी फिर क्या कहना।
धीरेन्द्र सिंह
17.03.2025
22.22
वाह !! काव्य की तुलना स्वाति नक्षत्र से, अद्भुत कल्पना !
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