उदासी
जल में गिरे
उस कंकड़ की तरह है
जिसमें नहीं उठती तरंगे
गिरता है कंकड़ और
डूब जाता है ढप ध्वनि संग,
उदासी वही ढप है,
डूबता, डूबता, गहरा और गहरा
उदासी की प्रवृत्ति
या कंकड़ की प्रकृति ?
पसरा सुप्त सन्नाटा
बजाते रहता है पार्श्वधुन
उदासी का और
कुछ कहने को उकताता
नयन,
प्रेमिका, पत्नी, परिवार,
पति, प्रेमी हैं प्रमुख,
प शब्द से आरंभ प्रथा भी
है सहेजे उदासी
शेष क्या है बाकी ?,
प्रथाओं की चलन में
यदि भावनाओं का हो दहन
अब कौन करता सहन !
कहता लेंगे खबर खासी
आ जाती तब उदासी,
हाँ है मन उदास
कोई “प” है खास
दिए की भींगी जैसे बाती
ऐसे मिलती है उदासी,
शौर्य लिखूँ, मनमौजी बनूँ
असत्य ना लिखा जाए
उदासी है क्या करूँ ?
सोचा कविता लिखी जाए।
धीरेन्द्र सिंह
20.09.2024
18.34
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