कहाँ किसकी कब लगी यह दुआ
कथानक अचानक नियामक हुआ
जो सोचा उसे खोजते ही रहे
लोग ऐसे मिले रोकते ही रहे
अब किसने हौले मन को छुआ
कथानक अचानक नियामक हुआ
शब्द प्रारब्ध से हो रहा स्तब्ध
भाव भी क्रमशः होते रहे ध्वस्त
दिल रहा बोलता लगी है बददुआ
कथानक अचानक नियामक हुआ
सहजता सरलता सत्यता का सम्मान
करे अभिव्यक्त जीवन के आसमान
तापमान स्थिर शेष गया बन धुआं
कथानक अचानक नियामक हुआ।
धीरेन्द्र सिंह
15.03.2024
14.48
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