बहुत गुमान चांदनी पे अगर प्यार है
खुशनसीब हैं जिनके संग यार है
चांद यूं नहीं उतरता सबकी नजरों में
रात अक्सर करती खबरदार है
अमूमन बज़्म में रहते हैं खामोश
दंश वही जानें जो तलबगार हैं
ओढ़ मासूमियत की चादर अलहदा
दिखाते ऐसे कि वह बेकरार हैं
किसी समूह में या फेसबुक पर मिलें
स्वार्थ की एक नई तलवार हैं
कितने गिरे पा दंश इश्किया इनका
नए की तलाश में यह रचनाकार हैं।
धीरेन्द्र सिंह
03.04.2023
20.10
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