दोहा
अपने दिल के कांच में,कहां-कहां है सांच
प्रणय निवेदन से पहले,उसको लीजै बांच
कितनी पड़ी किरीच है,चश्मा स्क्रैच सा नात
दिल भी शीशा नतकर,यहां-वहां पसरा घात
प्रेम वायरस अजर-अमर है,हृदय से उठती आंच
कोई उससे कला सजा ले,कोई तड़पन लिए सांस
हर युग प्रेम है बांचता, प्रेम चढ़ा न गाछ
जुगत, जतन सब चुके, खिल कुम्हलाती बांछ
आत्मा का दिल द्वार है, दिल से तन्मय तांत
बुने चदरिया पंथ, धर्म का, एक चादर-चादर बांट।
धीरेन्द्र सिंह
15.03.2023
06.46
वाह! बहुत ख़ूब!
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