रविवार, 4 मई 2025

गमन

 साँसों पर होती उन कदमों की थिरकन

फूलों का खिलना उन नगमों की सिहरन

महकती फिजां में यह सोच हो खड़ी कहे

पुष्प है या कि है उनकी यह नई महकन


उन्हें देखकर लगा देखा ही नहीं है उन्हें

एक झोंका गुलाबी उड़ा पहनकर पैरहन

एकटक यकायक सबकुछ घटा समझ परे

सांसें महक उठी पकड़ लय की गिरहन


जब थीं जुड़ी ऑनलाइन अंदाज़ गज़ब था

एहसास भाव ताश खेलता करता रहा नमन

मेरी दीवानगी को समझ बैठी मेरी आवारगी

बाद उसके जो हुआ प्रभाव उसका है गहन


अब सांस रह गयी हैं वो कहता जमाना

बेगाना मान बैठी हैं हँस दिल करे सहन

प्यार अधिकार कब बन जाता पता नहीं

तुम भी बढ़ रही चल रहा मैं, कैसा गमन।


धीरेन्द्र सिंह

04.05.2025

20.36



शुक्रवार, 2 मई 2025

सदा

 नादानियाँ नहीं तो उम्र का क्या मजा

जो वर्ष गिनना जानें दें उम्र को सजा


कब चढ़ती उम्र कब ढलती है जवानी

ढूंढा इसे बहुत कह न पाई जिंदगानी

मन जवां तन बूढ़ा आजकल दें धता

प्यार की है परिधि जमाना रहा जता


दिल के जो जानकार पढ़ते हैं तरंगे

मिल अँखियों से अँखियाँ रचे उमंगें

दिल-दिल से पूछता चैट का समय बता

छुप-छुप किशोरावस्था की पाएं अदा


नयनों में भक्ति है बसते हैं आराध्य

बातों में भजन है हर वेदना का साध्य

तन भी तो मंदिर है मन हवनकुंड सदा

भावों को क्यों दबाना दे दीजिए सदा।


धीरेन्द्र सिंह

01.05.2025

13.33



गुरुवार, 1 मई 2025

मैं

 यदि मैं प्रतीत हूँ तो प्यार का प्रतीक हूँ

यदि मैं व्यतीत हूँ तो यार का अतीत हूँ

यदि मैं अनदेखा तो खुद से करूँ धोखा

यदि भीड़ का गुमशुदा तो शोर संगीत हूँ


एक संबंध का मन से मन का गीत हूँ

सर्जन से अर्जन जो उसीका मैं प्रीत हूँ

मन छुआ रचना मेरी एक डोर बंध गयी वहीं

मंद सुलगन राख दबी वही लिए रीत हूँ


जो भी मिले जो जुड़े लिए उनकी शीत हूँ

अभिव्यक्तियाँ उत्तुंग लिए भाव का भीत हूँ

इंद्रधनुष की ऋचाओं की शोध मिलकर करें

भावरंग भर चला हूँ साधना का क्रीत हूँ।


धीरेन्द्र सिंह

01.05.2025

12.32



बुधवार, 30 अप्रैल 2025

कश्मकश

 जिंदगी के कश्मकश में

चाहत किश्मिश सा स्वाद

किस्मत किसलय सा लगे

चहक किंचित घटे विवाद


पगुराते नयनों में गहि छवि

पलक नमी करे संवाद

प्रतीकात्मक भाव बन गए

परखे गहराई हर नाद


साथ पकड़कर जीवन चलता

हाँथ-हाँथ रचे नाथ

शाख-शाख पर कूदाफांदी

माथ-माथ नई बात


कितनी उलझन झनक रही

सुलझन गति भी निर्बाध

उतनी विलगन बढ़ती जाए

सुलगन में गल रहे मांद।


धीरेन्द्र सिंह

30.04.2025

22.53



मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

तथ्य

 तथ्य है तो तत्व है

तत्व में है तथ्य शंकित

कथ्य है घनत्व है

घनत्व में कथ्य किंचित


समाज है तो शक्ति है

शक्ति में समाज वंचित

मानव हैं मानवता है

मानवता होती है सिंचित


पल्लवन है तो बीज है

बीज संकर किस्म रंचित

बागीचा है तो बागवान

बागवान हो सके समंजित


अग्रता है तो व्यग्रता है

व्यग्रता में लक्ष्य भंजित

समग्रता है तो पूर्णता है

पूर्णता होती है मंचित।


धीरेन्द्र सिंह

29.04.2025

14.49



सोमवार, 28 अप्रैल 2025

क्यों है

 समझ ले तुमको कोई 

यह जरूरी क्यों है

लोग देतें रहें सम्मान

यह मजबूरी क्यों है


हृदय संवेदनाएं करें बातें

बातों की जी हजूरी क्यों है

खुद को ढाल लिया खुद में

कहे कोई मगरूरी क्यों है


हर जगह है अकेलापन

भीड़ जरूरी क्यों है

सुगंध तुमसा न मिले

खुश्बू अन्य निगोड़ी क्यों है


सूर्य सा तपकर भी

आग तिजोरी क्यों है

भावनाओं को समझ ना सकें

शब्द मंजूरी क्यों है।


धीरेन्द्र सिंह

28.04.2025

19.48



रविवार, 27 अप्रैल 2025

कविता

 कविता प्रायः

ढूंढ ही लेती है

धुंध से

वह तस्वीर

जो

तुम्हारी साँसों से

होती है निर्मित

और जिसे

पढ़ पाना अन्य के लिए

एक

दुरूह कार्य है,


कल्पनाएं

धुंध से लिपट

कर लेती है

‘ब्लेंड’ खुद को

एक

‘इंडियन मेड स्कॉच’

,की तरह

और

दौड़ पड़ती है

धुंध संग

पाने तुम्हारी तरंग,


बहुत आसान नहीं होता है

तुम तक पहुंचना

या

तुम्हें छू पाना

तुम

जंगल के अनचीन्हे

फूल की तरह

पुष्पित, सुगंधित

और मैं

धुंध से राह 

निर्मित करता

एक

अतिरंगी सोच।


धीरेन्द्र सिंह

27.04.2025

21.24