शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2025

दुलार है

 वह अनुभूतियों की रंगीन गुबार है

हसरतें खिल जाएं ऐसी वह दुलार है


ऑनलाइन ही हो पाती हैं बस बातें

मैं खुली किताब ध्यान से वह बाचें

उसकी मर्यादाएं, लज्जा बेशुमार है

हसरतें खिल जाएं ऐसी वह दुलार है


उड़ ही जाता हूँ अपने रचित व्योम मेँ

देखती रहती है ठहरी वह अपने खेम में

संग उड़ जाए अविरल प्रणय पुकार है

हसरतें खिल जाएं ऐसी वह दुलार है


कितनी महीन सोचती नारी वह जतलाए

जब भी होती बातें मन मेरा जगमगाए

ऑनलाइन ही हमारे हृदयों की झंकार है

हसरतें खिल जाएं ऐसी वह दुलार है।


धीरेन्द्र सिंह

01.03.2025

04.31



गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

छपाक

 एक हल्की छप्प

कोई मछली उछली होगी

अन्यथा

यह गहरा शांत समंदर

असीम भंडार लिए

अपने अंदर

धरती की तरह

रहता है

सहज, शांत, एकाग्र,


एक हल्की स्मिति

कौंध गयी

दुबक गई अभिलाषा

नहीं की मेरी उक्त

पंक्तियों की प्रशंसा

बैठी थी

सहज, शांत, एकाग्र

रह-रहकर कौंध जाती थी

स्मिति कभी चेहरा होता या

कभी कोमल संचलन अभिव्यक्ति,


लगा कि वह बोल रही

बिन शब्द

अनुभूतियों के बयार से,

मौन तो मैं हूँ

शब्दों की भीड़ लिए,

अचानक छपाक

और

मैं उतरते चला गया।


धीरेन्द्र सिंह

27.02.2025

17.28



बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

शिवत्व

 उसी का महत्व है

जिसमे शिवत्व है

नीलकंठ कौशल

वही अस्तित्व है


मानवता श्रेष्ठ प्रेम

दूजे का कुशल क्षेम

स्व से सर्वभौम है

ऊर्जा प्रायः मौन है


प्रणय, प्रेम ही सतमार्ग

असत्य भी होते शब्दार्थ

शिव में शव कवित्व है

भस्म से जुड़ा निजत्व है


पीडाहरण भी स्वभाव 

क्रीड़ावरण भी निभाव

कर्मठता शिव घनत्व है

उसी का महत्व है।


धीरेन्द्र सिंह

27.02.2025

12.17



मंगलवार, 25 फ़रवरी 2025

जीत की तैयारी

 वर्तमान के व्यक्तित्व

अभिमन्यु हैं

निरंतर तोड़ते

व्यूह रचनाएं,


आक्रामक परिवेश है

परिचित अधिक

अपरिचित कम

महाभारत का परिवेश

यह ना वहम,


कितने अपने छूटे

साथ कुछ टूटे

फिर भी ना छूंछे

एक युद्ध है

मानव कहां बुद्ध है,


सपने-सपने चाह

अपने-अपने, आह!

अस्त्र-शस्त्र भिन्न

संघर्ष जारी है

जीत की तैयारी है।


धीरेन्द्र सिंह

25.02.2025

22.32



सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

देह

 नेह-नेह दृष्टि है

देह-देह सृष्टि है


मन की बात हो

भाव का नात हो

चाहत की वृष्टि है

देह-देह सृष्टि है


बातें सभी हो जाएं

देह चुप हो सुगबुगाए

देह क्या क्लिष्ट है

देह-देह सृष्टि है


रूप की बस चर्चा

शेष देह बस चरखा

नख-शिख समिष्ट है

देह-देह सृष्टि है


देह भी देवत्व है

भाव तो नेपथ्य है

देह गाथा तुष्टि है

देह-देह सृष्टि है।


धीरेन्द्र सिंह

24.02.2025

18.59




रविवार, 23 फ़रवरी 2025

प्यार दोबारा

 तब जला था दीप प्यार

जब राह ढल पड़े थे

किसने किए प्रयास कहां

दो हृदय मिल पड़े थे


कामना का मांगना जारी

याचना राह बल पड़े थे

क्षद्म हवा इतनी लुभाई

संग वह चल पड़े थे


मैं यहां वह भी कहीं है

दूरियां दाह लहक अड़े थे

एक ज्वाला प्रबल चपल

दोनों ओर दोनों खड़े थे


सुप्त होकर लुप्त अगन हो

होते जीवित मृत पड़े थे

प्यार दोबारा हो सकता नहीं

कोशिशें कर कई लड़े थे।


धीरेन्द्र सिंह

23.02.2025

15.35




शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

मस्त कलंदर

 बस आप ही नहीं समंदर

सभी ने छुपाया मन अंदर

यह दुनिया का उपहार है

व्यक्ति बन जाता है जंतर


अधूरी हैं अक्सर अभिलाषाएं

जीवन भूलभुलैया जंतर-मंतर

पर मानव कब रुकता-झुकता

पाने का संघर्ष नित निरंतर


यह भी चाहूं कब उसे पाऊं

मन मोहित चाहे सब सुंदर

भीतर घाव नयन बस छांव

कोशिश जग जाए कोई मंतर


प्यार है तो गम मिलता है

प्यार का कौन यहां धुरंधर

एक जीवन लिए कई सीवन

कहना दमादम मस्त कलंदर।


धीरेन्द्र सिंह

22.02.2025

19.27