गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

बदलियां

 मेरी साँसों में छाई बदलियां हैं

हवाएं अनजानी चल रही हैं नई

सुगंध एक सा है शामिल सब में

दिल में गुनगुना रहे है बसंत कई


कौन घिर आया बिना आहट बेसबब

अदब की सुर्खियों में है तालीम नई

बदलियां शोख कभी खामोश लग रहीं

अदाओं में किसी के तो मैं शामिल नहीं


बरस जाएं तो बदलियों को आराम मिले

सिलसिले साँसों के रियाज कर रहे हैं कई

सुगंध मतवारी हवा संग छू रही ऐसे

शोखियाँ उम्र की दहलीज पर हो छुईमुई


कभी तन उड़ रहा तो मन रहे गुपचुप

बदलियां साँसों में छुपछुप करें खोज कई

एक एहसास की तलाश है जमाने में

कयास के प्रयास से मिल जाए सोच नई।


धीरेन्द्र सिंह

07.02.2025

10.35




बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

पल्लवन

 प्रणय का पल्लवन भी जारी है

दबोचती अक्सर दुनियादारी है


हृदय के मूल बसा रहता प्यार

अपना परिवेश भी देता खुमार

सम्मिश्रण यह धार दुधारी है

दबोचती अक्सर दुनियादारी है


क्यों खींचूं मन चाह है सींचता

क्यों रुकूँ परिवेश राह है खींचता

स्पंदनों में महकती धुन प्यारी है

दबोचती अक्सर दुनियादारी है


उम्र की पंखुड़ियों से है सजा प्यार

अनुभव की मंजुरियां हैं खिली बहार

समझ में बूझ करती चित्रकारी है

दबोचती अक्सर दुनियादारी है।


धीरेन्द्र सिंह

06.02.2025

10.15




संशय

 दिल दहलता जब संशय है

कितना गहरा क्या संचय है


अपने जपने का सिलसिला

इसी में युग को है दुख मिला

लोगों का लक्ष्य तो धनंजय है

कितना गहरा क्या संचय है


कष्ट अपनों का है असहनीय

राह पथरीली तो भी वंदनीय

दर्द ज्यादा पर मन संजय है

कितना गहरा क्या संचय है


दिल फट पड़ने की परिस्थितियां

संस्कार भी और निर्मित रीतियाँ

जूझता बूझता लड़ता सुसंशय है

कितना गहरा क्या संचय है।


धीरेन्द्र सिंह

05.02.2025

19.33 




मंगलवार, 4 फ़रवरी 2025

मैसेज

 "किसने मना किया है"

वह बोल उठी 

और

उठा एक वलय

तत्क्षण मेरे मन मे

कि हां

गलत मैं ही हूँ,


बड़ा आसान होता है

कर देना टाइप

शुभ प्रभात या शुभ दिन

पर प्रतिदिन मात्र यही ?

नहीं न

फिर यदि कुछ टाइप किया जाए

तो निजता उभर आती है

और

रोक देती है यही सोच

प्रतिदिन टाइप करने से,


दो-तीन बार

हुआ है टाइप

हल्का उन्मुक्त संवाद

सहम कर थम कर

उसने भी किया है टाइप

जिसमें एक अलिखित

रेखा थी,

बस रुक गया

सहमकर नहीं

सम्मान से,


आज अचानक

हो गया संवाद

“इस बहाने मेरी याद तो आई”

टाइप की वह

और हो गया मैं हतप्रभ

हो गया टाइप

"रोज करता हूँ याद"

वह तत्काल टाइप की

"मैसेज किया करो न

किसने मना किया है।"


धीरेन्द्र सिंह

04.02.2025

22.06

सोमवार, 3 फ़रवरी 2025

शब्द

 शब्द को निहार कर

भाव को निथार कर

आप लिखे, पढ़ा किए

और मन मढ़ा किए


सृष्टि के विधान में

दृष्टि के सम्मान में

जो जिए पकड़ लिए

जीभर कर फहर लिए


लिख रहें और लिखिए

शब्द भाव न बदलिए

सत्य अभिमान लिए

अपने आसमान लिए


शब्द ही प्रारब्ध है

स्तब्ध ही आबद्ध है

एक जीवन के लिए

कतरन संजीवन के लिए।


धीरेन्द्र सिंह

03.02.2025

23.09

शनिवार, 1 फ़रवरी 2025

बसंत पंचमी

 बसंत पंचमी

दे बौद्धिक नमी

उत्सर्जित कल्पनाएं

सुसज्जित हों आदमी


सरस्वती अर्चना

आशीष की ना कमी

आसक्ति जितनी अधिक

ज्ञानवान उतनी ज़मी


हर घर निनाद हो

बसंत से हैं हमीं

यह परंपरा पूर्ण

सर्जनाएँ दे शबनमी।


धीरेन्द्र सिंह

01.02.2025

20.37




शुक्रवार, 31 जनवरी 2025

घूर

 घूरे पर बैठा व्यक्ति

सोचता

कितनी ऊंचाई है

क्या किसी ने

जिंदगी यह पाई है,


घूरा यहां गौण है

व्यक्ति ऊपर बैठा

सिरमौर है,


प्रमुखतया 

गोबर से निर्मित घूरा

चला जाएगा

बनकर जैविक खाद

अनाज का करने उत्पाद,

घूरे पर बैठा व्यक्ति

रहेगा सोचता

हर्ष के अतिरेक में

फिर ढूंढेगा कोई घूरा

देख अवसर बैठ जाएगा

और व्यक्ति सोचेगा

 अबकी शायद घूरा

उस व्यक्ति में ही

फसल उगाएगा,


चाहत

विवेकहीन

चटोरी होती है,

जब भी करती है संचय

जिंदगी

घूरा होती है।


धीरेन्द्र सिंह

31.0१.2025

09.28