शनिवार, 25 जनवरी 2025

बंदगी

 चलिए न जिस तरह ले चलती हैं जिंदगी

यह भला क्या बात हुई चाहिए न बंदगी


उड़ान के लिए एक छोर चाहता है बंदगी

वरना उड़ा ले जाएगी अनजानी जिंदगी

अच्छा लगता है अदाओं की भी नुमाइंदगी

यह भला क्या बात हुई चाहिए न बंदगी


एक हो आधार तयशुदा ठहराव का द्वार

धूरी हो तो मन बहकने का है यह आधार

जिंदगी एक नियमित भटकाव क्यों शर्मिंदगी

यह भला क्या बात हुई चाहिए न बंदगी


कहां कब होता मृदुल भटकाव बताता है कौन

मधुरतम भावनाएं लहरतीं है पर होती है मौन

जिंदगी व्यस्तता में लड़खड़ाते ढूंढती है जिंदगी

यह भला क्या बात हुई चाहिए न बंदगी।


धीरेन्द्र सिंह

25.01.2025

21.30



शुक्रवार, 24 जनवरी 2025

आंधी

 चीख निकलती है हलक तक आ रुक जाती है

यह मात्र वेदना है या एक विद्रोह की आंधी है


गरीबी, लाचारी में चीख अब बन चुकी है आदत

मजबूरियां चीखती रहती है झुकी अपनी वसाहत

उनपर लगता आरोप सभी उद्दंड और उन्मादी हैं

यह मात्र वेदना है या एक विद्रोह की आंधी है


किस कदर कर रहे हर क्षेत्र में आयोजित चतुराई

जिंदगी रोशनी की झलक देख खुश हो अकुलाई

हर कदम जिंदगी का बहुत चर्चित और विवादित है

यह मात्र वेदना है या एक विद्रोह की आंधी है


कब चला कब थका कब उन्हीं का गुणगान हुआ

चेतना जब भी चली भटक आकर्षण अभियान हुआ

साहित्य बिक रहा पर कुछ अंश प्रखर संवादी है

यह मात्र वेदना है या एक विद्रोह की आंधी है।


धीरेन्द्र सिंह

24.01.2025

21.01

गुरुवार, 23 जनवरी 2025

मनसंगी

 भावनाएं मेरी नव पताका लहराती बहुरंगी है

प्यार हमारी दुनियादारी कहलाती अतिरंगी है

नयन-नयन बात नहीं शब्द-शब्द संवाद गहे

बौद्धिकता से विलग रहे मनोभाव मनसंगी है


जिस दिल में बहे बिनभय संवेदना अनुरागी

मिल खिल कर कहें शब्द भाव सब समभागी

उसी हृदय से मिल हृदय कहे हम हुड़दंगी हैं

बौद्धिकता से विलग रहे मनोभाव मनसंगी है


क्या कर लेंगी क्या हर लेंगी बुद्धिजनित बातें

मन ही मन हो दौड़ बने तब आत्मजनित नाते

संवेदना की सरणी में नौकाविहार आत्मरंगी है

बौद्धिकता से विलग रहे मनोभाव मनसंगी है


कुछ तो कहीं तंतु है नहीं है किंतु-परंतु

तंतु-तंतु सह बिंदु है वहीं है जीव-जीवन्तु

सरगर्मी से हर कर्मी जीवन रचता प्रीतिसंगी है

बौद्धिकता से विलग रहे मनोभाव मनसंगी है।


धीरेन्द्र सिंह

23.01.2025

15.34

बुधवार, 22 जनवरी 2025

तीन चर्चित

 आस्था जहां हो समूह वहां सर्जना है

तीन चर्चित हुए प्रश्नांकित अर्चना है


त्रिवेणी के जलधार कुम्भ के बन तोरण

अखाड़े मिल आस्थाओं का करें आरोहण

तीन व्यक्तित्व चर्चा की क्यों भर्त्सना है

तीन चर्चित हुए प्रश्नांकित अर्चना है


लोग डुबकियाँ की चाहें सुनना डुबुक आवाज

अर्चना मंत्र को चाहें प्रचार प्रमुख एक साज

पूजा-पाठ निजता पर प्रदर्शन की कामना है

तीन चर्चित हुए प्रश्नांकित अर्चना है


मोनालिसा की आंख नहीं विपणन कौशल

आई टी शिक्षित युवाभाव के संत प्रबल

एक मॉडल करती आध्यात्म से सामना है

तीन चर्चित हुए प्रश्नांकित अर्चना है


कब साधु-संत कभी चाहते प्रचार-प्रसार

आध्यात्म समर्पण है ना कि गुबार कतार

टिप्पणियां बेहिचक शब्द-शब्द गर्जना है

तीन चर्चित हुए प्रश्नांकित अर्चना है।


धीरेन्द्र सिंह

22.01.2025

19.14



मंगलवार, 21 जनवरी 2025

महाकुम्भ

 अदहन सी भक्ति आसक्ति सुलगन बन जाए

दावानल उन्माद युक्ति मुक्ति ओर धुन लाए

ठिठुरन में दर्पण संस्कृति का जोर प्रत्यावर्तन

महाकुम्भ शंभु सा बहुरूप समूह गुण लाए


आराधना की साधना के कामना जनित रूप

सनातन की गहनता है कुछ गुह्यता भी सबूत

एक ओर आकर्षण दूजी ओर चुम्बक बुलाए

साधु-संत और महन्त अनंत सहज लुभाएं


त्रिवेणी की वेणी बन अपार भक्त की हुंकार

डुबकियां की झलकियां लगे प्रार्थना स्वीकार

बिना किसी शोर सहज सब अखाड़े गुनगुनाएं

भव्य-दिव्य कृतित्व आस्था लौ को जगमगाएं।


धीरेन्द्र सिंह

21.01.2025

17.14



सोमवार, 20 जनवरी 2025

संस्कार

 संस्कारों की

परत दर परत

ढाल लेती है व्यक्तित्व को

और

उंसमें लिपटते, बिहँसते 

जीवन में रचते, सजते

ठौर

करता है गुणगान

होता है निर्मित आदर्श

बौर

सिद्धांतों के फरने लगते हैं;


विश्व की सांस्कृतिक हवाएं

फहराती हैं जुल्फों को

असहज उन्मुक्त दे अंदाज

तौर

होता है आहत तो

कर धारित असमंजस

करने लगता है अपरिचित मंजन

गौर

स्वयं को या समाज को

या विश्व रचित हवाएं

किधर ताके किधर झांके

नयन क्रंदन;


संस्कारों की तहें

उड़ने नहीं देती

चुगने नहीं देती

ललचाती वैश्विक हवाएं

मौर्य

भारत का ही कहें

विश्व कई अपनाए

शौर्य

कुछ नया कर पाने को

लपके और बुझ जाए,


संस्कार की तहें

कुछ और तहें लगा जाएं।


धीरेन्द्र सिंह

20.01.2025

15.04



शनिवार, 18 जनवरी 2025

मोनालिसा

 कर्म के मर्म का शायद यही फैसला है

धर्म महाकुम्भ में मेरा भी जलजला है


खानाबदोश हूँ मोनालिसा मेरा नाम है

त्रिवेणी की कृपा नयन मेरे मेहमान हैं

मालाएं बिक रही हैं व्यवसाय खिला है

धर्म महाकुम्भ में मेरा भी जलजला है


मेरा व्यवसाय अधिक बेचनी है मालाएं

जल्दी बिक जाएं कभी हंसे तो मुस्काएं

वर्षों से इसी कर्म में व्यक्तित्व ढला है

धर्म महाकुम्भ में मेरा भी जलजला है


अशिक्षित हूँ अनुभव से सीखी दुनियादारी

मेरे इर्दगिर्द प्रसन्न दृष्टियों की है तीमारदारी

घूमी हूँ बहुत पर भाग्य ऐसा ना फला है

धर्म महाकुम्भ में मेरा भी जलजला है


हजारों फोटो और वीडियो मेरे अँखियन की

लोग रहते हैं घेरे क्यों यही बातें सखियन की

बहुत बिक रही मालाएं तनमन खिला है

धर्म महाकुम्भ में मेरा भी जलजला है।


धीरेन्द्र 

19.01.2025

11.15