सोमवार, 30 दिसंबर 2024

वह

 खयाल अपने बदलकर वह जवाब हो गए

करने लगे चर्चा कि हम बेनकाब हो गए


जब तक चले थे साथ, भर विश्वास हाँथ

बुनते गए खुद को, देता रहा हर काँत

पहचान मिली, सम्मान यूं आबाद हो गए

करने लगे चर्चा कि हम बेनकाब हो गए


हृदय से जुड़कर रहे निरखते भाव-भंगिमाएं

प्रणय तन तक है छलकते वह समझाएं

दिल से दिल से जो जुड़े, जज्बात हो गए

करने लगे चर्चा कि हम बेनकाब हो गए


हसरतों में उनके रहीं हैं बेसबब वीरानियाँ

रचते गए बेबाक जिंदगी की सब कहानियां

अब दौर यही भूत के सब असबाब हो गए

करने लगे चर्चा कि हम बेनकाब हो गए।


धीरेन्द्र सिंह

30.12.2024

13.05




रविवार, 29 दिसंबर 2024

भींगी आतिश

 सर्दियों की बारिश

चाहतों की वारिस

दावा ले बरस पड़ी

शुरू हुई सिफारिश


बूंदों की हसरतें हैं

बादलों की नवाजिश

हवाओं में है नर्तन

उनिदों की गुजारिश


शीतलता समाई भरमाई

चाह ऊष्मता खालिश

झकोरे बूंद पहनाए

सिहरन सिहरन मालिश


बूंद बने ओला

जल उठे माचिस

मौसम की अदाएं

जिंदगी भींगी आतिश।


धीरेन्द्र सिंह

30.12.2024

00.32




शनिवार, 28 दिसंबर 2024

ठंढी

 

शीतल चले बयार दिल जले हजार
किसी को पड़ी कहां
कंबल बंटते दग्ध अलाव मन पुकार
अजी वह अड़ी कहां

कविताएं हर भाव जगाएं खूब नचाए
साजिंदों की अढ़ी कहां
उष्मित कोमल भाव लिख रहे रचनाकार
इनको किसकी पड़ी कहां

हर दिन उगता मद्धम सूर्य रश्मि लिए
पंखुड़ी शबनम जुड़ी कहाँ
ठंढी अपनी मंडी पूरी निस साज सँवारे 
ओला, बर्फ,ओस लड़ी जहां

शीतल चले बयार आतिथ्य मिले विभिन्न
सांस भाप बन उड़ी कहां
दिन ढलते चूल्हा जल जाए भोज लिए
जीमनेवाले बेफिक्र, घड़ी कहां।

धीरेन्द्र सिंह
28.12.2024
17.52






गुरुवार, 26 दिसंबर 2024

वैवाहिक जीवन

 वैवाहिक जीवन के अक्सर झगड़े

हाँथ उठाने से हो जाते क्या तगड़े


सुविधापूर्ण जगत में सारी सुविधाएं

धन एकत्र करने की होड़ और पाएं

प्रतियोगिता, दबाव और कई लफड़े

हाँथ उठाने से हो जाते क्या तगड़े


विवाह की भी बदल रही परिभाषा

परिणय प्रयोग की बनी कर्मशाला

पास-पड़ोस, रिश्तों में चाहे हों अगड़े

हाँथ उठाने से हो जाते क्या तगड़े


शून्य पर पहुंची लगे सहनशीलता 

शुध्द व्यवहार गणित क्या मिलता

लड़खड़ा रहे अतृप्त संस्कार है पकड़े

हाँथ उठाने से हो जाते क्या तगड़े।


धीरेन्द्र सिंह

26.12.2024

15.39




मंगलवार, 24 दिसंबर 2024

फुलझड़ी

 हम उसी भावनाओं की फुलझड़ी हैं

आतिशबाजियों को क्यों तड़ातड़ी है


रंगबिरंगी रोशनी से है जिंदगी नहाई

शुभसंगी कौतुकी में है बंदगी अंगड़ाई

समस्याएं सघन मार्ग चांदनी खड़ी है

आतिशबाजियों को क्यों तड़ातड़ी है


फुलझड़ी संपर्क है जलने तक रुबाई

सुरक्षित शुभता दिव्यता भर मुस्काई

अन्य ध्वनि करें असुरक्षा भी बड़ी है

आतिशबाजियों को क्यों तड़ातड़ी है


अंगुलियों से पकड़ें तो चाह चमचमाई

फुलझड़ी सहयोगी संग-साथ गुनगुनाई

रोशन फूल सितारों की जिंदगी लड़ी है

आतिशबाजियों को क्यों तड़ातड़ी है।


धीरेन्द्र सिंह

25.12.2024

12.14




प्रेम कली

 आप यथार्थ मैं यथार्थ

अस्पष्ट हैं सब भावार्थ

अभिव्यक्तियां विभिन्न

दावा सभी करें समानार्थ


बूंद चुनौती सागर देती

गागर थिरकन चित्रार्थ

लहरें कब करदें तांडव

विप्लव कब होता परमार्थ


सबके हिय बहता सागर

मन गगरी स्पंदन स्वार्थ

सबकी खोज यथार्थ है

सबका प्रयास है ज्ञानार्थ


अपने यथार्थ को जानें

माने समझें क्या हितार्थ

प्रेम कली का प्रस्फुटन

सागर गागर बस संकेतार्थ।


धीरेन्द्र सिंह

24.12.2024

16.11




सोमवार, 23 दिसंबर 2024

साइबर क्राइम

 बातों ही बातों में ले लेते हैं रुपए

साइबर क्राइम के शिक्षित बहुरुपिए


शालीनता, शिष्टता के बन पुजारी

कितनों के खाते में की है सेंधमारी

अर्थजाल बना मोहक कहें चमकिए

साइबर क्राइम के शिक्षित बहुरुपिए


ज्ञानी, समझदार, सतर्क भी फंसते

खुद से लुटा दिया देर में हैं समझते

भावनाओं से खेलते चाहें और भभकिए

साइबर क्राइम के शिक्षित बहुरुपिए


चालबाजों का समूह रचते रहता व्यूह

सबकी निर्धारित भूमिका चालें गुह्य

लोभ की लपक दबंग उमंग ना गहिए

साइबर क्राइम के शिक्षित बहुरुपिए।


धीरेन्द्र सिंह

23.12.2024

17.39