गुरुवार, 12 दिसंबर 2024

चेहरा

 बहुत भोला सा निष्कपट चेहरा

देखते बोला नयन लिपट चेहरा


जीवन चुनौतियों की सिमटी हवाएं

संघर्ष नीतियों की विजयी पताकाएं

शालीनता से गर्वित चले फहरा

देखते बोला नयन लिपट चेहरा


दृष्टि देख रही थी बांधे बवंडर

भृकुटि लगे बांधे हुए समंदर

अवलोकन में तेजस्विता दोहरा

देखते बोला नयन लिपट चेहरा


हर चेहरा लगे ब्रह्मांड का एक विश्व

बंद अधर लगे सूचनाओं के अस्तित्व

हर चेहरे को प्रणाम भाव गहरा

देखते बोला नयन लिपट चेहरा।


धीरेन्द्र सिंह

12.12.2024

20.47 




बुधवार, 11 दिसंबर 2024

जीवन

 जीवन

एक प्यास

एक आस

एक तलाश

पर क्या यह है सच?

खरगोश सा है

अधिकांश जीवन

एक बनाई परिधि में

निर्द्वंद्व भटकना

और रहना प्रसन्न

उसी परिवेश में

जाने-पहचाने चेहरे बीच;


कौन तोड़ निकल पाता है

दायरा अपना

एक अनजानी चुनौती

का करने सामना,

आए चुनौतियां

दौड़े अपने 

सम्प्रदाय धर्म स्थली

कामना-थाम ना;


अधिकांश जीवन

अपनी मुक्ति का

करता है भक्ति,

एक उन्मुक्त उड़ान की

कामना में,

जीवन-जीवन को छलते

यूं ही

गुजर जाता है।


धीरेन्द्र सिंह

12.12.2024

08.41



शुक्रवार, 6 दिसंबर 2024

सीढियां

 एक युवती घुटनों बल चढ़ रही थी सीढियां

वह शक्ति नहीं था स्वभाव दे गई पीढियां


कई वयस्क हांफ रहे थे चढ़ते हुए लगातार

सदियों पुरानी, भारतीय पुरातत्व की झंकार

कितनों की मन्नत पूरी हुई जानती सीढियां

वह शक्ति नहीं था स्वभाव दे गई पीढियां


एक युवक लिए थैला दे रहा था उसका साथ

महिला ही होती हैं पकड़े जीवन के विश्वास

पथरीली थी कुछ अनगढ़ सीढ़ी समेटे कहानियां

वह शक्ति नहीं था स्वभाव दे गई पीढियां


आस्था और विश्वास का ही जग में उल्लास

अदृश्य ऊर्जा कोई कहीं पाए उसकी है आस

परालौकिक ऊर्जाओं में रुचि लगता बढ़िया

वह शक्ति नहीं था स्वभाव दे गईं पीढियां।


धीरेन्द्र सिंह


06.12.2024

19.38


गुरुवार, 5 दिसंबर 2024

झुरमुट

 झुरमुटों को पंख लग गए हैं

बिखरकर प्रबंध रच गए हैं

हवा न बोली न सूरज बौराया

अब लगे झुरमुट ही ठंस गए हैं


झुनझुनाहट झुरमुटों का स्वभाव है

झुंड ही विवेचना कर गए हैं

आंख मूंद उड़ रहे हैं झुरमुट

उत्तुंग कामना स्वर भए हैं


रेंग रहीं चींटियां झुरमुटों पास

दीमक उभर आग्रह कर गए

पंख लगे झुरमुट क्या यथार्थ है

प्रश्न उभरे दुराग्रह धर गए


विकास की विन्यास की प्रक्रिया

परिवर्तन साध्य समय कह गए

चिंतनीय जीवंतता जहां हुई क्षीण

संस्कार, संस्कृति, समाज बह गए।


धीरेन्द्र सिंह

05.12.2024

19.05

पुणे




मंगलवार, 3 दिसंबर 2024

कवि सम्मेलन

 शब्द किसी दायरे के रूप हो गए

रचनाकार रचकर स्वयं अनूप हो गए


दायरा यह शब्द का व्यक्ति का भी

अनवरत जुगाड़ में यह रचनाकार सभी

साहित्य गुट में गुटबाज खूब हो गए

रचनाकार रचकर स्वयं अनूप हो गए


वही रचनाएं वही कुम्हलाई गलेबाजी

यह मंच क्या बने रची हिंदी जालसाजी

जहां मंच वहीं साहित्य सबूत हो गए

रचनाकार रचकर स्वयं अनूप हो गए


एक रचनाकार होता मंच पर अपवाद

उसके दम पर संयोजन साहित्यिक दाद

आयोजक भी पुड़िया के भभूत हो गए

रचनाकार रचकर स्वयं अनूप हो गए।


धीरेन्द्र सिंह

03.12.2024

06.26




रविवार, 1 दिसंबर 2024

निज गीता

 मन के भंवर में

तरंगों की असीमित लहरें

कामनाओं के अनेक वलय

लगे जैसे

कृष्ण कर रहे हैं संचालित

प्यार और युद्ध का

एक अनजाना अंधड़,

तिनके सा उड़ता मन

इच्छाओं का इत्र लपेटे

चाहता समय ले पकड़,


लोगों के बीच बैठे हुए

उड़ जाता है व्यक्ति

जैसे लपक कर लेगा पकड़

मंडराते अपने स्वप्नों को

किसी छत के ऊपर,

कितना सहज होता है

छोड़ देना साथ करीबियों का

पहन लेने के लिए उपलब्धि,


उड़ रहे हैं स्वप्न

उड़ रहे हैं व्यक्ति

अपने घर के मांजे से जुड़े,

ऊपर और ऊपर की उड़ान

कई मांजे मिलते जैसे तीर कमान

एक-दूसरे को काटने को आमादा,

किंकर्तव्यमूढ़ देखता है व्यक्ति

कभी स्वप्न कभी घर

और उदित करता है विवेक

एक कृष्ण

रच जाती है निज गीता।


धीरेन्द्र सिंह

01.12.2024

22.25




शुक्रवार, 29 नवंबर 2024

कौन लिख रहा

 कौन लिख रहा वर्तमान जो कहे

प्यार की गोद में लेखक हैं पड़े


व्यथा प्यार की, पीड़ा बिछोह का

कथा यार की, बीड़ा न मोह का

प्यार विशाल बतलाते मानव ढहे

प्यार की गोद में लेखक हैं पड़े


या तो भूत भाव या हैं कल्पनाएं

सपूत कीर्ति छांव कोई न बतलाए

झुरमुट तले खरगोश बंद दृष्टि पड़े

प्यार की गोद में लेखक हैं पड़े


शौर्य नहीं शक्ति नहीं न तो जाबांजी

चॉकलेटी चेहरा लिए बस हो इश्कबाजी

पांव अथक चल रहे छोड़कर धड़े

प्यार की गोद में लेखक हैं पड़े।


धीरेन्द्र सिंह

29.11.2024

16.51