सोमवार, 29 जनवरी 2024

लीपें अंगना

 

गद्य-पद्य संरचना भांवों के कंगना

सबकी अपनी मर्जी लीपें जैसे अंगना

 

कुछ चाहें लिखना निर्धारित जो मानक

कुछ की अभिव्यक्तियां मुक्त उन्मानक

सर्जना कब चाहती है शर्तों में बंधना

सबकी अपनी मर्जी लीपें जैसे अंगना

 

यह लेखन सही गलत है यह उद्बोधन

पर सबमें निहित अर्थ सार्थक संबोधन

हर सोच नई लेखन नया क्यों दबंगना

सबकी अपनी मर्जी लीपें जैसे अंगना

 

श्रेष्ठता का चयन हो जैसे शबरी बेर

यह क्या लिखनेवालों को करते रहें ढेर

वर्चस्वता का ढोंग भरे उसका संग ना

सबकी अपनी मर्जी लीपें जैसे अंगना।

 

धीरेन्द्र सिंह


30.01.2024

12.22

हो जाऊंगा अशुद्ध

 मन को ना छुओ नहीं मैं बुद्ध

छुओगे तो हो जाऊंगा मैं अशुद्ध


प्रीत प्रणय है सदियों की बीमारी

रीत नीति है वादियों की ऋतु मारी

मुझसे जुड़कर प्रवाह करो न अवरुद्ध

छुओगे तो हो जाऊंगा मैं अशुद्ध


आत्म मंथन का हूँ मैं एक पुजारी

पारदर्शी सत्यता इच्छा पूर्ण सारी

सरल शांत मन ना कहीं अवरुद्ध

छुओगे तो हो जाऊंगा मैं अशुद्ध


उसे चिढ़ाता था कह रानी दिखलाओ

वह कहती थी कर्मठता तो दिखलाओ

वह थी रानी राजा सा मैं निबद्ध

छुओगे तो हो जाऊंगा में अशुद्ध


व्यक्तित्व मेरा हवन सुगंधित ज्वाला

कृतित्व को उसने टोह-टोह रच डाला

उससा कोई कहीं नहीं थी बड़ी प्रबुद्ध

छुओगे तो हो जाऊंगा मैं अशुद्ध।


धीरेन्द्र सिंह

29.01.2024


20.43


रविवार, 28 जनवरी 2024

प्रणय

 जब हृदय पुष्पित हुआ

प्रणय आभासित हुआ

व्योम तक गूंज उठी

दिल आकाशित हुआ


अभिव्यक्तियों की उलझनें

भाव आशातित हुआ

प्रणय की पुकार यह

सब अप्रत्याशित हुआ


राम की सी प्राणप्रतिष्ठा

महक मर्यादित हुआ

अरुण योगीराज सा

मनमूर्ति परिचारित हुआ


हृदय उल्लसित कुसुमित

सुगंध पर आश्रित हुआ

प्रणय बिन कहे बहे


व्यक्ति बस मात्रिक हुआ।


धीरेन्द्र सिंह

29.01.2024

08.45

शुक्रवार, 26 जनवरी 2024

स्व

 

सर्जना का उन्नयन हो अर्चना दे विश्वास

आत्मा जब लेती है जकड़ अपने बाहुपाश

 

मन करता सर्जना लिपटाए प्रकृति अनुराग

स्व में सृष्टि समाहित हँस करती द्वाराचार

धरा स्वयं में हरी-भरी मिले नीला आकाश

आत्मा जब लेती है जकड़ अपने बाहुपाश

 

जग लगता अवचेतन मन भीतर ही चेतन

स्पंदित, सुगंधित, समंजित है स्वधन

निपट अकेला संग जीवन खेला होता आभास

आत्मा जब लेती है जकड़ अपने बाहुपाश

 

इससे बोलो उसको फोन मन जैसे हो द्रोन

स्व मरीन अकुलाहट, बेचैनी दोषी फिर कौन

दुनियादारी दायित्व तलक फिर अपना आकाश

आत्मा जब लेती है जकड़ अपने बाहुपाश।

 

धीरेन्द्र सिंह


26.01.2024

19.19

बुधवार, 24 जनवरी 2024

दिल एक

 

कोई तो बताए एक से अधिक प्यार

दिल एक कैसे अनेक का अधिकार

 

पंखुड़ी की ओस में लिपट भावनाएं

सुगंध सी प्रवाहित होकर कामनाएं

पलकों से उठा चूनर करें अभिसार

दिल एक कैसे अनेक का अधिकार

 

रिश्ता तोड़ गयीं छोड़ गयीं महारानी

क्या यह उचित ढूंढें एक देवरानी

प्यार का भी अंग होता है प्रतिकार

दिल एक कैसे अनेक का अधिकार

 

माना कि बेखुदी मैं जाते हैं लट उलझ

यह एक दुर्घटना है प्यार ना सहज

दूसरों में ढूंढते एक उसी की झंकार

दिल एक कैसे अनेक का अधिकासर।

 

धीरेन्द्र सिंह

24.01.2024

22.58

रविवार, 21 जनवरी 2024

रामजन्मभूमि

 

झंडों ने सड़कों को इजाजत दे दी

भक्ति दे दिया और इबादत ले ली

 

आक्रमणकारी मुगल वंश का था दंश

हमसे ही हमारा चुरा लिया था अंश

मानसिक पहल ने वही इजाजत दे दी

भक्ति दे दिया और इबादत ले ली

 

रा मलला मंदिर सनातन का है गर्व

आततायियों ने सोचा बंद हो यह पर्व

सर्वोच्च न्यायालय ने राम महारत देखी

भक्ति दे दिया और इबादत ले ली

 

धार्मिक सौहार्द्रता भारत के रग बसा

अयोध्या में ही भव्य मस्जिद रचा

सनातन देता हर धर्मों को नव वेदी

भक्ति दे दिया और इबादत ले ली

 

22 जनवरी वर्ष 24 का है इतिहास

साक्ष्य विश्व होकर देखे सनातनी आस

आस्था ने विस्थापित को मात दे दी

भक्ति दे दिया और इबादत ले ली।

 


धीरेन्द्र सिंह

21.01.2024

23.25

शुक्रवार, 12 जनवरी 2024

सुतृप्ता, अतृप्ता

 सुतृप्ता, अतृप्ता, स्वमुक्ता


सुतृप्ता

एक नारी

एक रचना

एक कृति

एक वृत्ति


अतृप्ता

एक क्यारी

मति दुधारी

नया तलाशती

निस संवारती


स्वमुक्ता

एक अटारी

उन्नयनकारी

भाव चित्रकारी

ऋतु न्यारी


सुतृप्ता, अतृप्ता, स्वमुक्ता

जीवन इनसे चलता, रुकता

सुतृप्ता, स्वमुक्ता निधि सारी

अतृप्ता घातक साहित्य सूखता


अतृप्ता से बचने का हो उपाय

साहित्य हरण का लिए स्वभाव

लील जाए सर्जक और सर्जना

इसलिए लिखा, हो साहित्य बचाव।


धीरेन्द्र सिंह


11.01.2024

17.01