शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

राम मंदिर

 इतिहास के पन्नों को निहार

पांच सौ वर्षों की ललक पुकार

स्वर्ण हिरण सा विचरित भ्रम

हुआ ध्वनित फिर राम टंकार


पांच सौ वर्ष पुरातत्व अभिलाषी

कुछ प्रतीक प्रमाण सच आसी

न्यायालय सर्वोच्च का निर्णय

राम नाम का तथ्य अभिलाषी


वाद-विवाद असंयमित रचि संवाद

मेरी-तेरी का गूंजा गहि नाद

प्राण त्यजन बसि गहन घनन

राम राज्य का गुंजित निनाद


इतिहास पुनः सर्जित अनुप्रतियाँ

दिग-दिगंत अयोध्या की युक्तियां

शिल्प कौशल में संस्कृति कृतियाँ

राम मंदिर ओर प्रवाह भक्तियाँ 


बाईस जनवरी सनातनी की इकहरी

प्राण प्रतिष्ठा नयना सब लहरी

आस्था अनुनय आमंत्रित सविनय

राम धनुष सा कौन है प्रहरी।



धीरेन्द्र सिंह

05.01.2024

21.14

गुरुवार, 4 जनवरी 2024

बिनकहे

 मुझे हर तरह छूकर तुमने

दिए तोड़ बिनकहे नूर सपने


एक बंधन ही था, जिलाए भरोसा

तुमने भी तो, थाली भर परोसा

यकायक नई माला लगे दूर जपने

दिए तोड़ बिनकहे नूर सपने


वेदना यह नही मात्र अनुभूतियां

प्यार में भी होती हैं क्या नीतियां

प्यार तो अटूट देखे मजबूर सपने

दिए तोड़ बिनकहे नूर सपने


तन की चाहत में है सरगर्मियां

प्यार तो महक दिलों के दरमियां

प्यार बंटता भी है कब कहा युग ने

तोड़ दिए बिनकहे नूर सपने


चाह की राह में कैसा भटकाव

जुड़ी डालियां जब तक ही छांव

कैसा अलगाव खुद को लगे छलने

तोड़ दिए बिनकहे नूर सपने।


धीरेन्द्र सिंह

05.02.2024


08.23


बहेलिया

 प्रहर की डगर पर, अठखेलियां

पक्षी फड़फड़ाए, छुपे हैं बहेलिया


मार्ग प्रशस्त और अति व्यस्त

कहीं उल्लास तो है कोई पस्त

चंपा, चमेली संग कई कलियां

पक्षी फड़फड़ाए, छुपे हैं बहेलिया


लक्ष्यप्राप्ति को असंख्य जनाधार

आत्मदीप प्रज्ज्वलित लौ संवार

सुगबुगाहट में सुरभित हैं बस्तियां

पक्षी फडफ़ड़ाए, छुपे हैं बहेलिया


बहेलिया स्वभाव करे छुप घात

नकारात्मकता से रखे यह नात

कलरव मर्दन करने की तख्तियां

पक्षी फड़फड़ाए, छुपे हैं बहेलिया।


धीरेन्द्र सिंह


04.02.2024

20.47

बुधवार, 3 जनवरी 2024

मस्तियाँ


अजब गजब दिल की बन रही बस्तियां

हर बार धार नई दे तुम्हारी मस्तियाँ

 

तुम के संबोधन को बुरा ना मानिए

सर्वव्यापी तुम ही कहा जाए जानिये

सर्वव्यापी लग रहीं आपकी शक्तियां

हर पल धार नई दे तुम्हारी मस्तियाँ

 

लगन की दहन मनन नित्य कह रहा

क्यों छुपाएं सत्य रतन दीप्ति कर रहा

उलझन समाए भ्रमित भौंचक हैं बस्तियां

हर पल धार नई दे तुम्हारी मस्तियाँ

 

नित नए भाव से मुखर आपके अंदाज

विभिन्न रस सराबोर समययुक्त साज

कलाएं अनेक अद्भुत लगें अभिव्यक्तियां

हर पल धार नई दे तुम्हारी मस्तियाँ

 

लुप्त हुए सुप्त हुए या कहीं गुप्त हुए

मुक्त हुए सूक्ति हुए या वही उपयुक्त हुए

आपकी अदाओं की अंजन भर अणुशक्तियां

हर पल धार नई दे तुम्हारी शक्तियां।

 

धीरेन्द्र सिंह


03.02.2024

19.22

मंगलवार, 2 जनवरी 2024

आपकीं लाइक

 मेरी रचना इकाई न दहाई

आपकी लाइक से हर्षाई


अभिव्यक्ति में आसक्ति नहीं

शब्दों में मनयुक्ति नहीं

भावनाओं की है उतराई

आपकी लाइक से हर्षाई


मन उत्साहित है लेखन

शब्द अबाधित हैं खेवन

है रहस्य रचना तुरपाई

आपकीं लाईक से हर्षाई


सत्य ही साहित्य है

तथ्य ही व्यक्तित्व है

सर्जना की ऋतु अंगड़ाई

आपकी लाईक से हर्षाई


स्नेह की स्निग्धता आपूरित

मेघ की निर्द्वंदता समाहित

भावनाएं प्रवाहित छुईमुई

आपकी लाइक से हर्षाई।



धीरेन्द्र सिंह

03.01.2024

10.22

हयवदन

 तृषित नयन डूबे गहन करे आचमन

गहराई की गूंज रचे प्रक्रिया हयवदन


प्रगति की गति नहीं जो मति नहीं

निर्णय कैसा जहां उदित सहमति नहीं

द्वार-द्वार ऊर्जा की प्रज्ज्वलित अगन

गहराई की गूंज रचे प्रक्रिया हयवदन


दृष्टि गरज तो क्या दृष्टिकोण सरस

बदलियां घनी तो क्या व्योम जाए बरस

भ्रम रचित कर्म में युक्तियां गबन

गहराई की गूंज रचे प्रक्रिया हयवदन।


धीरेन्द्र सिंह

02.01.2024

18.10

चांद

 मन भावों की करने गहरी एक जांच

नववर्ष के प्रथम प्रहर निकला चांद


देख चांद मन बोला क्या तुम पाओगे

भाव जंगल मन में भटक थक जाओगे

यहां वेदना सघन कोई न पाता आंक

नववर्ष के प्रथम प्रहर निकला चांद


मनगामी अनुगामी तथ्यपूर्ण है कल्पना

सत्य अल्प अनुभूतियां बाकी है जपना

सब दोहरे हैं सबकी अपनी-अपनी मांद

नववर्ष के प्रथम पहर निकला चांद


क्या प्रतीक है यह और प्रकृति संदेश

ताक रहा भाव नयन से कोई विशेष

सरपंच सा व्योम क्या सुन रहा फरियाद

नववर्ष के प्रथम पहर निकला चांद।


धीरेन्द्र सिंह


02.01.2024

13.57