शनिवार, 24 जून 2023

इश्क़ भी रहमत है


यार तुमको भूल जाऊं कैसी हरकत है

सुना है जिंदगी में इश्क़ भी रहमत है


न हो संवाद शब्द तो भाव भी तो हैं

भावनाओं से जग भी तो सहमत है

तुम कितनी दूर हो मजबूर भी कहीं

सुना है जिंदगी में इश्क़ भी रहमत है


गुरुर अपना बिना किसी आधार के

गर्व पर जो आए वह जहमत है

तुम्हारा घमंड ही तनाव दिया प्रचंड

सुना है जिंदगी में इश्क़ भी रहमत है


मासूम बनकर जिंदगी जीना भी हुनर

मासूमियत पाकीज़गी की बतरस है

भोलेपन से छली या गयी छली कहीं

सुना है जिंदगी में इश्क़ भी रहमत है


यह इश्क़ जिसने चखा गूंगा हो गया

प्रणय प्रगल्भ में भी बेहद कसरत है

जीवन को जी लेने की हसरतें अनेक

सुना है जिंदगी में इश्क़ भी रहमत है।


धीरेन्द्र सिंह


शुक्रवार, 23 जून 2023

स्व का सत्य

 

सत्य का उद्गम कहां

मवेशियों की चाह है

चारागाह की समीक्षा

युगों से अथाह है


दृष्टि परिधि में विधि

तिथि निधि माह है

अवलोकन ही तथ्य

रीति प्रतीति खास है


स्व सुकृति लगे विभाजित

मर्यादित क्या राह है

एकल एकत्व कहीं नेपथ्य

अर्थाघृत अमृत वाह है


खंडित मंडित हो रहे

पंडित ज्ञानी आह हैं

रंजित व्यंजित संधि

संचित वंचित दाह है


खोह में भी टोह

मोह लगे स्याह है

सोह सकल आधिपत्य

 कलुषता अथाह है


भगवान भव्य कहे श्रव्य

अंतस अपथ प्यास है

सत्य से संपृक्त व्यक्तित्व

कृतित्व क्यों उदास है।


धीरेन्द्र सिंह

24.06.2023

07.12


बुधवार, 21 जून 2023

धड़ाधड़ लेखन भ्रम साहित्य


शब्द को उलीचते आदित्य हो गए

बिन तपे वह तो साहित्य हो गए


जो भी लिख दिए वह भाव गहन

लाईक टिप्पणियों सानिध्य हो गए

एक कोना रोशनी कृत्रिम कर वो

रचनाधर्मिता के आतिथ्य हो गए


यौन वर्जनाओं को प्रेम हैं कहते

बोल्ड लेखन के मातृत्व हो गए

दूसरों की प्रतिक्रिया अश्लीलता लगे

शोर मचाते वह स्त्रीत्व हो गए


धड़ाधड़ लेखन भ्रम साहित्य का

प्रदीप्त क्या लगे, कृतित्व हो गए

साहित्य सरणी का प्रस्फुटन वह

यह सोच समेट, निजत्व हो गए


हिंदी में कथाकार, कवि का घनत्व

अपनत्व छांव में कवित्व हो गए

हर रोज मंडली भजन भाव से मिले

कारवां सीमित में औचित्य हो गए।


धीरेन्द्र सिंह

सोमवार, 19 जून 2023

मुंतशिर हो गए

 

पहले देखा, बद्र बशीर हो गए

चले तो मनोज मुंतशिर हो गए


याद शायरी महकी उनकी जुबानी

हिंदी की मचलती दिखी रवानी

मोहब्बत की बदली नीर हो गए

चले तो मनोज मुंतशिर हो गए


छल कपट बहुरूपिया अंदाज लिए

क्षद्म खूबसूरती का नाज लिए

चाहतों की दरिया के पीर हो गए

चले तो मनोज मुंतशिर हो गए


इतिहास, पुराण की भ्रमित घ्राण

नई पीढ़ी तक पहुंचाने दिव्य प्राण

हवन कुंड की तो खीर बन गए

चले तो मनोज मुंतशिर हो गए


घमंडी रणबांकुरे भी तीर हो गए

चले तो मनोज मुंतशिर हो गए।


धीरेन्द्र सिंह

20.06.2023

06.48

शनिवार, 27 मई 2023

सेंगोल


कांपती अंगुलियों ने

28 मई 23 को

सेंगोल को 

नए संसद में

किया था स्थापित

तब प्रवाहित हुई थी

विद्युतीय तरंग

सेंगोल से संसद में

गुजरती मोदी अंगुलियों से

जैसे

जटा भोले से 

हुई थी प्रवाहित मां गंगा

भूतल पर,


कंपन प्रमाण है

जीवंतता का

परिवेश सहबद्धता का

विभिन्न मंत्रों की अनुगूंज लिए

नया संसद 

तत्पर है

 वैश्विक नेतृत्व के लिए।


धीरेन्द्र सिंह

28.05.2023

11.07


रविवार, 14 मई 2023

नक्को प्यार

 अवसादों का दे, अभिनव झंकार

ना बाबा ना बाबा नक्को प्यार


अतृप्त कामनाओं का है निनाद

विस्मृत सुधियों का है संवाद

पल प्रति पल बस मांगे इकरार

ना बाबा ना बाबा नक्को प्यार


शब्द वाक्य भाव, रहते अंझुराय

अर्थ युक्ति अभिव्यक्ति धाय

कभी किनारे लगे कभी मझधार

ना बाबा ना बाबा नक्को प्यार


मन पुकारे, मोबाइल पर नहीं उठाया

कैसे कह दूं अपना जब कृत्य पराया

चाहत चकनाचूर यह तो दुत्कार

ना बाबा ना बाबा नक्को प्यार


कुछ महीने प्रीत की अविरल फुहार

फिर छींटों में दिखे आपसी प्रतिकार

महीनों तक खींचे, गूंज ललकार

ना बाबा ना बाबा नक्को प्यार


सोशल मीडिया फोन अचानक ब्लॉक

रोशनदान भी नहीं रोशनी कैसे झांक

थर्ड पार्टी बीच, उल्लसित मदभार

ना बाबा ना बाबा नक्को प्यार।


धीरेन्द्र सिंह

14.05.2023

04.38


शुक्रवार, 12 मई 2023

मर्तबान

 कथ्य की नगरी में तथ्य मर्तबान है

झूठ को खरीदिए सजी दुकान है


छल की छुकछुकाहट नहीं है कबाहट

कड़वाहट का अब असंभव निदान है


क्षद्म का बज़्म आकर्षण का केंद्र

प्रवेश मिल जाएगा गर मेहरबान हैं


निजता के हांथों तौल गए कई लोग

धूर्तता का एक अपना संविधान है


भोली सूरत का प्रेम खुदगर्ज सा 

फिर भी रहो जुड़े कि कीर्तिमान है


संशय के अंजन से सजी हुई अंखिया 

आधीरात को कहें हुआ बिहान है


कब कौन किस कदर लूटे अस्मिता

भावनाओं को छुपाए कब्रिस्तान है।


धीरेन्द्र सिंह

12.05.2023

23.05