जीवन के झूमर, पहाड़ियों के ऊपर
छोटे-छोटे मकान, आसमां को छूकर
समतल न राहें, समतल नहीं जीवन
श्रम साधना पुकारे, दृगतल हरियाली छूकर
गहन शांति चहुंओर, अंग-अंग रच भोर
छोटे-छोटे मकान, आसमां को छूकर
हरे झुरमुटों में, उभरता कहीं समाज
सड़क पर कहीं अकेला, संभावना ऊपर
कर्म के अंजोर में भाग्य को बो कर
छोटे-छोटे मकान, आसमां को छूकर
पर्यटन में निहित है विकास संभानाएँ
होता है उदित सूरज यात्री मंत्र जपकर
अतिथियों का स्वागत मन मुदित होकर
छोटे-छोटे मकान, आसमां को छूकर।
धीरेन्द्र सिंह
18.10.2024
17.47, पंचगनी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें