क्या लिखा जाए?
कुछ नहीं सुझाती
अंतर्चेतना तब
उठता है यह प्रश्न
और विवेक
लगता है ढूंढने
भावनात्मक आधार;
लिखी जाती है तब
कविता मस्तिष्क से
गौण हो जाता तब
भाव
अधिकांश कविताओं का
ऐसा ही निभाव:
लिखे जाते हैं जब विचार
बौद्धिकता देती हुंकार
कथ्य पक जाते
भट्टे की ईंट की तरह
और भाव
हो जाते ठोस,
कविता नहीं जोश;
भावनाओं की डोरियों पर
फैलाए जाते हैं शब्द
तब उगती है कविता
कभी सूर्य से
कभी चाँद सी
और सिमट जाती है जिंदगी
तेल भरे बालों में
लाल फीता का
दो फूल सजाए
रोशनी सी।
धीरेन्द्र सिंह
11.10.2024
09.16