बांध मन यूं रचना क्या
खाक होने से बचना क्या
लौ बढ़ी लेकर नव उजाला
दीप्ति में कितना रचि डाला
कोई सोचे यूं जपना क्या
खाक होने से बचना क्या
सर्जन की गति है अविरामी
सहज, सकल गति है ज्ञानी
कोई सोचे यूं ढहना क्या
खाक होने से बचना क्या
रीत जाता निर्माण समय संग
मिटना सत्य पर अथक मृदंग
कोई सोचे यूं कहना क्या
खाक होने से बचना क्या।
धीरेन्द्र सिंह
09.10.2024
13.11