गुरुवार, 15 अगस्त 2024

असुलझी कहानियां

 जीवन की हैं कुछ अपनी निज बेईमानियां

कहते नहीं थकता मन असुलझी कहानियां


एक दरस रचना भाव निभाव बन गया

एक सरस था संवाद स्वभाव बन गया

कहन के दहन की लगन बेजुबानियाँ

कहते नहीं थकता मन असुलझी कहानियां


अभिव्यक्तियों की चाह भले को बहलाएं

आसक्तियों की राह रुपहले मार्ग दिखलाए

हसरतें तलाशती हैं खूबसूरत सी नादानियां

कहते नहीं थकता मन असुलझी कहानियां


सुलझ गया तो मानो कुछ वश में ना रहा

ऐसा भी क्या जीवन जो चाहे बस कहकहा

कुछ दर्द हो कुछ तड़प लिए कारस्तानियां

कहते नहीं थकता मन असुलझी कहानियां।


धीरेन्द्र सिंह

16.08.2024

10.55