सोमवार, 7 अक्तूबर 2024

टप्प

 शांत सरोवर सा मन

अति मंद उठती

यादों की लहरें,

भावनाएं 

घने जंगल की

महुवा सा पसरे,

गुनगुनाता, बुदबुदाता

मन

भीतर ही भीतर फहरे;


सरोवर के किनारे

उगी हरी घास

झुंड में हो इकहरे,

पास की हलचलें

प्रकृति को निहारें

अपनी ही रीत भरे,

सरोवर सा मन

इन सबके बीच

सोचे धंसे गहरे;


एक बूंद टप्प

ध्वनि संग वलय

अनुभूति भाव दोहरे,

मुस्करा उठा सरोवर

तरंग बज उठी

कंपित जल कंहरे,

क्यों की वह याद

कोई ना फरियाद

सरोवर बस संवरे।


धीरेन्द्र सिंह

07.10.2024

13.52