चल मोहब्बत कर लें सोहबत
कौन अच्छा उनके बनिस्बत
एक समय सौभाग्य सा है
एक गति में निजता अस्मत
एक प्रयास लिए नव उल्लास
सोचना क्या, हो जा सहमत
शौर्य यदि है नहीं, चल नहीं
वरना बोलेगा हृदय, कैसी जहमत
याचना से कब मिला है प्यार
बिन झुके कब मिल सकी रहमत
मर्यादाएं उलझनों में हैं उलझाती
सोचना इतना नहीं, ओ मोहब्बत
कब हृदय दर्शाता है यूं व्यग्रता
तथ्य का त्यौहार, दे न अभिमत।
धीरेन्द्र सिंह
17.10.2024
21.43