आपकी अदा सदा रहती बुदबुदा
अक्सर पूछे दिल फिर से बता
एक संगीत धुन सी लगें गुंजित
ध्यान हो धन्य अदा में समाहित
जैसे भित्ती चढ़ती बलखाती लता
अक्सर पूछे दिल फिर से बता
झूम कर जो चलें प्रकृति झूम जाए
आपकी दिव्यता से भव्यता मुस्काए
मुग्ध तंद्रा में दिल अंतरा दे सजा
अक्सर पूछे दिल फिर से बता
यह पूछना प्रश्न नहीं ललक संवाद
दिल में क्यों होता अदाओं का निनाद
क्या प्रणय अव्यक्त की यही सजा
अक्सर पूछे दिल फिर से बता।
धीरेन्द्र सिंह
20.07.2024
09.30
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