मुझको अपने वश कर ले, जिंदगानी
गलियां कूचे बोल रहे, मेरी ही कहानी
पतझड़ में रुनझुन, खनके सावन गीत
वर्षा रिमझिम में, विरह तके मनमीत
अक्सर कहते लोग, मुझमें बदगुमानी
गलियां कूचे बोल रहे, मेरी ही कहानी
करधन में लगा है उसका ही
जपगांठ
बहुत छुपाया लग न जाए, कोई आंख
सांस गहन होती, मगन नमन जिंदगानी
गलियां कूचे बोल रहे, मेरी ही कहानी
तन्मय मन उपवन में, दीवानगी जतन
क्यों जिंदगी गुनगुनाती
होती ना सहन
जीवन दे दीवानगी व्योम धरा
मनजानी
गालियां कूचे बोल रहे, मेरी ही कहानी।
धीरेन्द्र सिंह
03.07.2024
06.18
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें