केबल ही बंद कर दिए तरंगें बाधित
यह श्राप नया है प्रौदयोगिकी
बाधित
कर दिए ब्लॉक मनोभाव की
शुष्नुमाएं
नाड़ियां स्पंदित भाव सोच
कहां जाएं
केबल लगे केंचुल सनक में
सम्पादित
यह श्राप नया है प्रौद्योगिकी
बाधित
बेतार का तार कई जीवन रहा
संवार
आप केबल ठेपी परे, अबोला है तार
ताक-झांक चहुंओर
निःशब्द मर्यादित
यह श्राप नया है प्रौद्योगिकी
बाधित
हर पर्दे से सशक्त प्रौद्योगिकी
का पर्दा
अश्व असंख्य मनोभाव के उडें
ना गर्दा
अदृश्य अलौकिक बन मन में
अबाधित
यह श्राप नया है प्रौद्योगिकी
बाधित।
धीरेन्द्र सिंह
05.07.2024
07.22
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें