निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

मंगलवार, 19 मार्च 2024

वहीं से चले

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 वहीं से उतर कहीं वाह हो गए वहीं से चले थे वहीं राह हो गए अकस्मात है या कि कोई बात है अनुबंध है या वही जज्बात है कदम थे भटके या राह खो गए वह...

शोख रंग

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 शोख रंग अब जाग रहे हैं मन ही मन कुछ ताग रहे हैं मौसम है कुछ कर जाने का संग अभिलाषाएं भाग रहे हैं अबीर-गुलाल कपोल से भाल शेष रंग में निहित ध...
शनिवार, 16 मार्च 2024

ना जाने

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 ना जाने हम कैसे महकते रहे चली राह वैसे हम चलते रहे एक संगीत गूंजती थी मेरे साथ अलमस्त गीतों को रचते रहे मिली कुछ अदाएं जैसी फिजाएं आँचल सी ...

वह हैं कहते

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 मुझे इन पलकों से अनुमति मिली है अब वह हैं कहते कि सहमति नहीं है नयन के विवादों से हुआ था समझौता नत होकर पलकों ने दिया तब न्यौता अधर स्मिति ...

शोर

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 बहकते रहो तुम भभकते रहो शोर के भाव ले चहकते रहो कुछ किताबें लिखी जो हो बतकही विद्वता का पताका कही सो सही मूल क्या है कभी ना लहकते गहो शोर क...

एक खयाल

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 एक खयाल का कमाल  आप ही का है धमाल  स्पंदनों की चाँदनी है  दूरियों का है मलाल  तुम कहो क्यों सोच  विगत का ही सवाल  ऐसी सोच से ही  हृदय करता ...

खोजते ही रहे

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 कहाँ किसकी कब लगी यह दुआ  कथानक अचानक नियामक हुआ जो सोचा उसे खोजते ही रहे  लोग ऐसे मिले रोकते ही रहे  अब किसने हौले मन को छुआ कथानक अचानक न...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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