मंगलवार, 19 मार्च 2024

शोख रंग

 शोख रंग अब जाग रहे हैं

मन ही मन कुछ ताग रहे हैं

मौसम है कुछ कर जाने का

संग अभिलाषाएं भाग रहे हैं


अबीर-गुलाल कपोल से भाल

शेष रंग में निहित धमाल

मन अठखेली में पाग रहे हैं

संग अभिलाषाएं भाग रहे हैं


सुसंगत है यहां रंग बरजोरी

हैं रंग दृगन की कमजोरी

रंग शोख तुम्हें साज रहे हैं

संग अभिलाषाएं भाग रहे हैं


मन कुलांच लागे नहीं साँच

मन अपने को रहता माँज

रंग उमंग ही भाग्य रहे हैं

संग अभिलाषाएं भाग रहे हैं।


धीरेन्द्र सिंह

19.03.2024

04.37

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