शोख रंग अब जाग रहे हैं
मन ही मन कुछ ताग रहे हैं
मौसम है कुछ कर जाने का
संग अभिलाषाएं भाग रहे हैं
अबीर-गुलाल कपोल से भाल
शेष रंग में निहित धमाल
मन अठखेली में पाग रहे हैं
संग अभिलाषाएं भाग रहे हैं
सुसंगत है यहां रंग बरजोरी
हैं रंग दृगन की कमजोरी
रंग शोख तुम्हें साज रहे हैं
संग अभिलाषाएं भाग रहे हैं
मन कुलांच लागे नहीं साँच
मन अपने को रहता माँज
रंग उमंग ही भाग्य रहे हैं
संग अभिलाषाएं भाग रहे हैं।
धीरेन्द्र सिंह
19.03.2024
04.37
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