बहकते रहो तुम भभकते रहो
शोर के भाव ले चहकते रहो
कुछ किताबें लिखी जो हो बतकही
विद्वता का पताका कही सो सही
मूल क्या है कभी ना लहकते गहो
शोर के भाव से चहकते रहो
यह ना समझें चालें हैं अज्ञात
विगत की धूरी से लेखन नात
धर्म ग्रंथ कथानक लिखते बहो
शोर के भाव से चहकते रहो
एक आकर वर्तनी सुधारने लगे
भाषा अज्ञानता को बखानते चले
भाषा भंगिमा संग यूं गमकते ढहो
शोर के भाव से चहकते रहो
फेसबुकिया मंडली के ओ शिल्पकार
कमेंट्स और लाइक के हो तलबगार
उड़ ना पाओगे ऐसे ही मंजते रहो
शोर के भाव से चहकते रहो।
धीरेन्द्र सिंह
16.03.2024
15.20
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