वहीं से उतर कहीं वाह हो गए
वहीं से चले थे वहीं राह हो गए
अकस्मात है या कि कोई बात है
अनुबंध है या वही जज्बात है
कदम थे भटके या राह खो गए
वहीं से चले फिर वहीं राह हो गए
कहीं से उतरना ना होता सहज
उतरती सहजता या कि समझ
उखड़ता कहां, गहन चाह बो गए
वहीं से चले फिर वहीं राह हो गए
पीटें कनस्तर कहें यह है ढोल
मन की धुन में मन के हैं बोल
बेफिक्री इतनी व्योम अथाह हो गए
कहीं से चले फिर वहीं राह हो गए
कहें भूल गए पर ना भुला जाता
हृदय कब तिरस्कारे जो मन भाया
खयालों में बंध सुप्त प्रवाह हो गए
वहीं से चले फिर वहीं राह हो गए।
धीरेन्द्र सिंह
19.03.2024
14.48
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