निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

सोमवार, 5 जुलाई 2021

शंकर तांडव

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 गीत लिखने को गगन रहे आतुर सज-धज कर धरा भी इठलाए प्रकृति प्रणय है अति प्रांजल प्रीत गीत सब रीत अकुलाए उग सी रही मन बस बन दूर्वा नैवेद्य वहीं...

समय की वेदना

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 समय की वेदना का यह अंजन है निरखता मन तुम्हें यह प्रभंजन है नियति की गोद में निर्णय ही सहारा उड़े मन को मिले फिर वही किनारा हृदय के दर्द का अ...

चूम जाओ

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 ओ मन झूम जाओ आकर चूम जाओ बहुत नादान है यह मन दहन धड़कन है सघन सावनी व्योम लाओ आकर चूम जाओ परिधि जीवन का है बंधन देहरी पर सजा चंदन मर्यादा नि...

ओ सगुनी

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 मेरी सांस चले एहसास रुके कोई बात है या फिर कहासुनी तुम रूठ गई हो क्यों तो कहो सर्वस्व मेरी कहो ओ सगुनी निस्पंद है मन लूटा मेरा धन दिल कहता ...

हम ही तुम थे

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 किसी को छोड़ देना भी  सहज आसान इतना कि जैसे दीप जल में प्रवाहित  कामनाओं के, लहरें जिंदगी की खींच ले जाती हैं  मन दीपक छुवन की लौ है ढहती  ज...
रविवार, 4 जुलाई 2021

बाधित सम्प्रेषण

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 शाम हसरतों की कर रही शुमारी और गहरी हो रही फिर वही खुमारी एक अकेले लिए चाहतों के मेले कैसे बना देता है वक़्त खुद का मदारी प्रणय का प्रयोजन ह...
शनिवार, 3 जुलाई 2021

कब बोलोगी

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 चाहत की धीमी आंच पर इंसान भी सिजता है, तथ्य है सत्य है आजीवन न डिगता है, चाहत कब झुलसाती है नैपथ्य बस सिंकता है, कब बोलोगी इसी का इन्तजार म...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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