मेरी सांस चले एहसास रुके
कोई बात है या फिर कहासुनी
तुम रूठ गई हो क्यों तो कहो
सर्वस्व मेरी कहो ओ सगुनी
निस्पंद है मन लूटा मेरा धन
दिल कहता है मेरी अर्धांगिनी
एक रिश्ता बनाया प्रकृति जिसे
खामोश हो क्यों प्रिए अनमनी
पग चलते हैं तुम ओर सदा
राहों ने खामोशी क्यों है बुनी
पत्ते भी हैं मुरझाए उदास से
बगिया की मालन लगे अनसुनी।
धीरेन्द्र सिंह
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