भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।
किसी को छोड़ देना भी
सहज आसान इतना कि
जैसे दीप जल में प्रवाहित
कामनाओं के,
लहरें जिंदगी की खींच ले जाती हैं
मन दीपक
छुवन की लौ है ढहती
जल गर्जनाओं के,
हम ही तुम थे
कि बाती दीप सजाए
तपिश बाती में धुआं भ्रमित
अर्चनाओं के।
धीरेन्द्र सिंह
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