भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।
ओ मन झूम जाओ
आकर चूम जाओ
बहुत नादान है यह मन
दहन धड़कन है सघन
सावनी व्योम लाओ
परिधि जीवन का है बंधन
देहरी पर सजा चंदन
मर्यादा निभाओ
शमित होती हर दहन
मन को चूमता जब मन
वादे ना भुलाओ
आकर चूम जाओ।
धीरेन्द्र सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें